मंगलवार, 6 अक्तूबर 2009

स्त्री की स्वतंत्रता : दूबे की पोस्ट का जवाब

आमतौर पर मैं किसी के ब्लॉगपोस्ट के प्रत्युत्तर में कुछ कहती नहीं पर ये लेख मैं दूबे जी की पोस्ट के जवाब में लिख रही हूँ. सबसे पहले मैं उनको ये सलाह देना चाहुँगी कि वे महिला संगठनों के बारे में लिखने से पहले कुछ जानकारी जुटा लेते तो अच्छा होता. सबसे पहले मैं उनकी महिला "शरीर के बाज़ारीकरण" की बात का जवाब देना चाहती हूँ. जब हम बाज़ार में महिलाओं के शरीर की नुमाइश के बारे में बात करते हैं तो दोष महिलाओं को देते हैं. हम ये भूल जाते हैं कि लगभग सभी बड़ी विज्ञापन कम्पनियों पर पुरुषों का कब्ज़ा है. हम बात करते हैं कि क्यों कोई महिला संगठन इसका विरोध क्यों नहीं करता? मैं ये पूछती हूँ कि किस संगठन ने इसका समर्थन किया है, बल्कि बहुत बार महिला संगठनों ने इस बात का जोर-शोर से विरोध किया है. पर ये बात तो सभी जानते हैं कि बाज़ार किसी की नहीं सुनता. न सरकार की, न जनता की, न संगठनों की. वह सुनता है तो सिर्फ़ पैसे वालों की. ख़ैर, बाज़ार की कहानी से बात विषयान्तरण हो जायेगा. देखिये, प्रायः बहुत सी बातों के साथ नारी की स्वतंत्रता की बात को भी लेकर लोगों में बहुत सी ग़लतफ़हमियाँ हैं. नारी संगठन जिस स्वतंत्रता की बात करते हैं वह बिल्कुल भी पश्चिम की स्वतंत्रता जैसी नहीं है. वस्तुतः इस बात को लेकर भी बहुत मतभेद हैं. पर लगभग सभी नारीवादी पितृसत्ता का विरोध करते हैं, जो कि हमारे समाज की संरचना से जुड़ी अवधारणा है. मैं अपने पुराने लेखों में इस विषय पर चर्चा कर चुकी हूँ. यहाँ मैं अपनी बात को बिन्दुवार रखने का प्रयास कर रही हूँ.
-नारी की स्वतंत्रता का मुख्य अर्थ है "निर्णय लेने की स्वतंत्रता" न कि समाज के नियम न मानने की. वो विवाह करे या न करे, करे तो कब और किससे करे इस बात का निर्णय और ऐसे ही अन्य निर्णय. इससे नारी अपने पैरों पर खड़ी हो सकेगी और अपने विरुद्ध हो रहे अत्याचार का विरोध कर सकेगी.
-यौन-शिक्षा एक अलग बहस का विषय है. यौन-उच्छृँखलता के लिये लड़का-लड़की दोनों दोषी होते हैं तो केवल लड़कियों को ही दोषी क्यों ठहराया जाता है? अति किसी भी बात की घातक होती है, यौन-सम्बन्धों की भी, यह बात युवा वर्ग को समझाना किस तरह से ग़लत है?
-हम औरतों के किसी भी तरह के शोषण के विरुद्ध हैं. आपने कहा है कि आजकल राजनीतिक सभाओं में भी औरतों को छोटे-छोटे कपड़ों में नचाया जाता है. आपने यह नहीं देखा कि उन्हें नचवाता कौन है? और उन्हें देखने कौन जाता है? औरतें तो नहीं जाती. और आपने कभी यह जानने की कोशिश की है कि ये लड़कियाँ कौन हैं और किन परिस्थितियों में ये काम करती हैं? मैंने दूध के लिये अपने बच्चे को बिलखता छोड़ कर नाचने वाली लड़कियों को देखा है. रात में बिना कुछ खाये-पिये घंटों नाचकर बेहोश होते हुये देखा है, अपनी आँखों के सामने. एक बार आप भी सहानुभूति से देखिये.
-कोई भी औरत जानबूझकर अपना घर तोड़ना नहीं चाहती. मैंने डॉक्टर, प्रवक्ता और वकील जैसे पद पर प्रतिष्ठित महिलाओं को अपना परिवार टूटने से बचाने के लिये पति से पिटकर भी चुप रहते देखा है. घर तब टूटते हैं जब बात हद से गुज़र जाती है.
दूबे जी मैं एक महिला संगठन के साथ कार्यकर्ता (एक्टिविस्ट) के रूप में काम कर चुकी हूँ और अपने अनुभव से ये बात कर रही हूँ. हमने घरेलू हिंसा से पीड़ित औरतों की काउंसलिंग की है और देखा है कि जिन पढ़ी-लिखी औरतों लोग तरह-तरह के आरोप लगाते हैं वही अपने परिवार को छोड़ना नहीं चाहती, जबकि अपेक्षाकृत निर्धन और अनपढ़ औरतें अपने पति और परिवार  को छोड़ने को तैयार हो जाती हैं. मैं अपने अनुभव से आपको बता रही हूँ न कि सुनी-सुनायी.

Posted on 10/06/2009 12:36:00 am | Categories: