tag:blogger.com,1999:blog-4615066544544881646.post2858065842840046009..comments2023-07-08T15:20:03.282+05:30Comments on नारीवादी-बहस : प्रेम, प्रेम विवाह और पितृसत्ता muktihttp://www.blogger.com/profile/17129445463729732724noreply@blogger.comBlogger20125tag:blogger.com,1999:blog-4615066544544881646.post-58566884836611245842018-10-03T00:36:57.251+05:302018-10-03T00:36:57.251+05:30अगर हम इसके गहराई में जाकर घोर से देखेंगे कि प्रेम...अगर हम इसके गहराई में जाकर घोर से देखेंगे कि प्रेम विवाह के अस्वीकार के क्या कारण है तो हमें इसकी जड़ में धार्मिक कारण मिलेगे।Shakar ki posthttps://www.blogger.com/profile/00749582889402653344noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4615066544544881646.post-6941850657832686162018-07-26T05:14:46.576+05:302018-07-26T05:14:46.576+05:30Sir Prem bivah 18 sal se pahle Kare to Kanun jur...Sir Prem bivah 18 sal se pahle Kare to Kanun jurm hai or samj 18 sal k kam umr me sadi De to kaya ye Kanun jurm nahi o v ladki Ke bina raja Mandi se Esme intersections Kanun lagta hi jo sadi jabr jasti 18 se km umr k ladki ko sadi karwata hi Mai RAVI plzz upk pas Koi jawab ho to muje Cal Kare quki hm Dono payer karte hai but hmne Kuch galt nahi kiya hai Mai usko bola hu Tum study karo plzz plzz Sir help us 8486560165Anonymoushttps://www.blogger.com/profile/10057941673509674028noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4615066544544881646.post-18750731212631470812013-03-06T00:55:56.247+05:302013-03-06T00:55:56.247+05:30Mai bhi soncha karata tha ki kyon akshar prem viva...Mai bhi soncha karata tha ki kyon akshar prem vivah kuchh dino ke baad ek bojh ban jaata hai.<br />Prachalit maanyta ke anusar aise unka ek dushare me interest ka khatm ho jana ya phir rojmarra ki musibato ko mana jata hai, par yadi aisa hai to prem k astitwa par hi sawal khada ho jaata hai.<br />Yahan Jo apane bataya ki prem barabari managta hai Jo ki normal family structure me ho nahi pata hai. Mudde ke bare me nayi samajh prasad karata hai.Dayanand Aryahttps://www.blogger.com/profile/05806267941810654316noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4615066544544881646.post-88824434104568729992013-03-06T00:41:25.196+05:302013-03-06T00:41:25.196+05:30aapke is lekh ko padh kar laga
- aankhe aur bhi h...aapke is lekh ko padh kar laga<br /><br />- aankhe aur bhi hain~<br />kisi pahalu pe najar dalati huyin~<br />unke najariyon ko bhi samajho~<br />Jo apani aakhen kholani ho //Dayanand Aryahttps://www.blogger.com/profile/05806267941810654316noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4615066544544881646.post-68745616787663783492012-10-23T09:24:42.878+05:302012-10-23T09:24:42.878+05:30पुण्य का काम किया। अच्छा लग रहा होगा।पुण्य का काम किया। अच्छा लग रहा होगा।अनूप शुक्लhttps://www.blogger.com/profile/07001026538357885879noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4615066544544881646.post-11852099675906286132012-10-23T08:40:10.095+05:302012-10-23T08:40:10.095+05:30धन्यवाद, देखिये हम फिर से ब्लॉगिंग में कूद पड़े है...धन्यवाद, देखिये हम फिर से ब्लॉगिंग में कूद पड़े हैं :)<br />muktihttps://www.blogger.com/profile/17129445463729732724noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4615066544544881646.post-41327047454675599592012-10-23T08:18:35.450+05:302012-10-23T08:18:35.450+05:30इस पोस्ट को पढ़कर भी बहुत अच्छा लगा।इस पोस्ट को पढ़कर भी बहुत अच्छा लगा।अनूप शुक्लhttps://www.blogger.com/profile/07001026538357885879noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4615066544544881646.post-51387247476047647502012-10-19T10:44:11.186+05:302012-10-19T10:44:11.186+05:30aapke lekh ka andaaj nirala hai!!
kya prem jaruri...aapke lekh ka andaaj nirala hai!!<br /><br />kya prem jaruri hai ya prem vivah??<br />mujhe to lagta hai vivak ke uprant panapne wala prem hi sabse behtareen hai:)<br />मुकेश कुमार सिन्हाhttps://www.blogger.com/profile/14131032296544030044noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4615066544544881646.post-70782864989509391182012-10-18T17:56:30.156+05:302012-10-18T17:56:30.156+05:30निचले स्तर पर प्रेम विवाह आज भी एक भयावह त्रासदी ह...निचले स्तर पर प्रेम विवाह आज भी एक भयावह त्रासदी ही बनी हुयी है ....बहुत बढ़िया विश्लेषणात्मक प्रस्तुति कविता रावत https://www.blogger.com/profile/17910538120058683581noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4615066544544881646.post-64564016241451743792012-10-07T15:38:00.583+05:302012-10-07T15:38:00.583+05:30पति पत्नी के प्रेम में कितना और कैसा प्रेम होता है...पति पत्नी के प्रेम में कितना और कैसा प्रेम होता है कह नहीं सकता लेकिन यह वास्तविक प्रेम से अलग होता है इसमें प्रेम वह कर रहा है जो निर्भर है और उससे कर रहा है जिस पर वह निर्भर है।वही सारे त्याग और समझौते आदि भी कर रहा है यानी की पत्नी।उसे लगता है कि पति की वजह से ही समाज में उसका सम्मान है और उसका अस्तित्व ही पति पर निर्भर करता है ।मैं इसे पत्नी का स्वार्थ तो नहीं कहूँगा लेकिन शायद इस प्रेम में मोह की मात्रा ज्यादा है वहीं यदि कहीं पति खुद आर्थिक रूप से पत्नी पर निर्भर है या इसका सामाजिक रुतबा पत्नी की तुलना में कम है वहाँ खुद पत्नी भी पति के साथ मन से नहीं जुड़ पाती है बहुत सी तो ये ही सोचती होंगी कि ये डैडी ने किस लल्लू के साथ मेरी शादी कर दी।<br />और वैसे भी पितृसत्ता तो माँ द्वारा बच्चों के प्रति प्रेम में अंतर करवा देती है जैसे बेटे को अधिक स्नेह बैटी को कम या बिल्कुल नहीं तो फिर स्त्री पुरुष के मध्य प्रेम पर तो असर पडना ही है।<br />राजनhttps://www.blogger.com/profile/05766746760112251243noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4615066544544881646.post-20822631781352560122012-10-07T15:35:27.650+05:302012-10-07T15:35:27.650+05:30प्रेमियो को भी चूँकि रहना तो समाज में ही होता है अ...प्रेमियो को भी चूँकि रहना तो समाज में ही होता है अतः वो भी विवाह के बाद इसके अनुसार ही ढलने की कोशिश करते हैं।लडके लडकियों से जैसी समाज या परिवार अपेक्षा करता है वैसी ही अपेक्षाएँ प्रेमी प्रेमिका एक दूसरे से करते है जैसे पुरुष को स्त्री की कोमलता मासूमियत आदि भाती है तो स्त्री को पुरुष का थोड़ा रफ टफ पना या आर्थिक रूप से सुदृढ़ होना आदि। लेकिन जैसे जैसे महिलाओं की स्थिति समाज मे अच्छी हुई है इस बात में भी परिवर्तन आया है।मैंने बहुत से प्रेमी जोडे ऐसे देखे हैं जिनमें लड़का खूबसूरत है लेकिन लड़की साधारण शक्ल सूरत की है।या लडकी लडके से उम्र और कद में भी बड़ी है कुछ मामलों में तो लड़के से ज्यादा कमाती भी है।लेकिन पारंपरिक विवाह में अक्सर ऐसा नहीं हो पाता ये वहीं हो सकता हैं जहाँ बिना कोई शर्त सच्चा प्रेम होता हो।वहाँ आपको पुरुष द्वारा भी बहुत से त्याग और समझौतों की कहानियाँ मिल जाएँगी लेकिन विवाह मे तो केवल सती प्रथा ही दिखाई देती है क्योंकि वहाँ बराबरी नहीं है और समाज का दबाव हावी है।<br />राजनhttps://www.blogger.com/profile/05766746760112251243noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4615066544544881646.post-57131535100626376492012-10-04T22:35:56.477+05:302012-10-04T22:35:56.477+05:30prem sab bas ki bat nahi.prem sab bas ki bat nahi.Anonymoushttps://www.blogger.com/profile/13761981201588914492noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4615066544544881646.post-41531333673602396282012-10-04T14:57:36.037+05:302012-10-04T14:57:36.037+05:30पूँजीवाद और पितृसत्ता...
आराधना, दोनो ही वादों को...पूँजीवाद और पितृसत्ता... <br />आराधना, दोनो ही वादों को लेकर तुम्हारी समझ <br />grass-roots की सी और in-depth है...<br /><br />जो रोटी देता है वही भय भी दिखाता है...और तुम्हारे <br />जीवन का क़ब्ज़ा भी ले लेता है...कभी-कभी इन्सानी <br />आत्मा पर भी सिनाज़ोरी चलती है...और अपने बेहद <br />लचिले, परिवर्तनशील और बहुरुपियेपन से वे सभी को <br />कठपुतली की तरह नचाता भी है...जहां जीने के अधिकार <br />भी बाधित होते है...पितृसत्ता भी इसी सिक्के का दूसरा <br />पहलू है...जहां उसके पक्ष में धर्म सत्ताएं खड़ी है और हमारे <br />समय की हर छोटी-बडी सत्ता भी खड़ी है...सच कहा है कि <br />इससे लड़ने को,इसके हर रुप को जानने को लगातार संघर्ष <br />जरूरी है... <br /><br />आज पितृसत्ता "शब्द" मात्र भी ( सही स्वरूप को जान ना तो <br />बाद की बात है) हमारे देश की ७० % महिलाओं तक शायद <br />ही पहुंचा हो...पर नारीवादी-बहसों के ज़रिये इस दिशा में <br />हो रहे प्रयत्न भी आशास्पद तो हैं ही.<br />GGShaikhhttps://www.blogger.com/profile/02232826611976465613noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4615066544544881646.post-1331289055658805902012-10-04T10:52:07.172+05:302012-10-04T10:52:07.172+05:30मुझे भी बहुत ज्यादा आश्चर्य होता है जब ये देखती हू...मुझे भी बहुत ज्यादा आश्चर्य होता है जब ये देखती हूँ कि अपने बच्चों को हर तरह की आधुनिक सुख-सुविधाएँ देने वाले, अपने बच्चों के फैशनेबल कपड़े पहनने पर इतराने वाले, यहाँ तक कि उन्हें विपरीतलिंगी मित्र बनाने की छूट देने वाले माता-पिता शादी जैसे मुद्दों पर रूढ़िवादी बन जाते हैं. muktihttps://www.blogger.com/profile/17129445463729732724noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4615066544544881646.post-69902392988410223372012-10-04T10:16:07.820+05:302012-10-04T10:16:07.820+05:30सबसे पहले तो इस चिंतन के लिए साधुवाद आराधना जी |
...सबसे पहले तो इस चिंतन के लिए साधुवाद आराधना जी | <br /><br />वाकई में प्रेम जैसी चीज़ों को समझपाना अपने जैसे समाज के लिए संभव ही नहीं है | इसका एक सबसे बड़ा कारण मुझे इंडीविजुअलीटी को तवज्जो ना देना है |किसी इंसान कि थिंकिंग कोई मायने नहीं रखती, जो पोथी में लिखा है बस वही सही है, तुम्हे मानना होगा नहीं तो जाओ भाड़ में| और कोई माने ना भी तो कहाँ जाए, इंसान एक सामाजिक पशु जो ठहरा | हमने समाज का ढांचा ऐसा बना दिया है कि इसमे नयी बातों को स्वीकार करने की बजाय नकार देने की परिपाटी है | भगत सिंह सबको चाहिए पर पड़ोसी के घर में, हमारा बेटा तो अफसर बनेगा |<br /><br />धर्म मुझे हमेशा जीवन जीने का एक सरलीकृत तरीका लगता था जो की विचारकों और मनीषियों ने घोर चिंतन के बाद बनाया था | पर हमारा समाज ये नहीं समझ पाया कि कोई भी सिस्टम वो चाहे धर्म क्यूँ न हो, उसे अगर वक़्त के साथ बदला नहीं गया तो रुके पानी की तरह सड़ जाता है | जब जब हमने धर्म से वैज्ञानिक और भावुक पहलुओं को दरकिनार करने की कोशिश की, हमारा धर्म भ्रष्ट हो गया | और हम समाज को इसी धर्म की दुहाई दे देकर चलाते रहे हैं , और यही भ्रष्ट-धर्म ही कहीं न कहीं पित्रसत्तात्मक सत्ता का कारण भी है |<br /><br />रही बात प्रेम, विवाह और प्रेम विवाह की, तो यही धार्मिक ढकोसले एक बार फिर सामने आ जाते हैं | अब बताइए प्रेम भी क्या किसी चेकलिस्ट को फोलो करके किया जा सकता है ? और जब एक बार प्रेम हो जाए तो क्या उसे वाकई में ख़त्म किया जा सकता है ? मुझे तो नहीं लगता | फिर बातें आदर्शों, परम्पराओं , रीति-रिवाजों से जोड़ दी जाती हैं | और इंसान ना चाहकर भी झुकता है, क्या करे , उसका साथ देने वाले ही कितने होते हैं|<br /><br />कभी-कभी मुझे लगता है प्रेम का इतना तिरस्कार, अपनी पसंद से शादी करने का हक बच्चों से छीन लेना जैसी थिंकिंग ही हमारे समाज से दहेज़, जातिवाद, भाषावाद जैसी कुप्रथाओं को भी नहीं जाने दे रही | नतीजा अच्छे वर की तलाश में माँ-बाप पूरे जीवन की कमाई लुटाने को तैयार बैठे हैं | लड़के बिकाऊ हो जाते हैं, बाकायदा रेट-लिस्ट है, आपके नाम के टाइटिल के हिसाब से |<br /><br />मुझे तो इस बात पर भी अक्सर अचम्भा होता है कि किसी रिश्तेदार के बताये, न्यूज़ पेपर में छपे या मैट्रिमोनियल वेबसाइट्स पर मिले रिश्तों पर तो लोग भरोसा कर लेते हैं पर अपने बच्चों के द्वारा पसंद किये गए लाइफ-पार्टनर पर उन्हें शक रहता है | क्यूँ? जिनको शादी करनी है वो ही तो जाने-समझेंगे न अपने बारे में ज्यादा???<br /><br />पता नहीं कभी कभी लगता है कि ये धर्म,रीति-रिवाज़ जैसी चीज़ें हमारी ज़िंदगी को आसान बनाने के लिए बनाई गयी थी और आज इनमे ज़िंदगी के अलावा सब मिलता है |<br />देवांशु निगमhttps://www.blogger.com/profile/16694228440801501650noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4615066544544881646.post-74633823176951761292012-10-04T09:22:24.374+05:302012-10-04T09:22:24.374+05:30फिलहाल तो प्रेम विवाह और पितृसत्ता के सम्बन्धों पर...फिलहाल तो प्रेम विवाह और पितृसत्ता के सम्बन्धों पर विचार कर रही हूँ. लिंक के लिए धन्यवाद !muktihttps://www.blogger.com/profile/17129445463729732724noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4615066544544881646.post-87469829185526842052012-10-04T09:00:58.700+05:302012-10-04T09:00:58.700+05:30प्रेम को विवाह का रूप देने के लिए दुनिया के खिलाफ ...प्रेम को विवाह का रूप देने के लिए दुनिया के खिलाफ बगावत करनी पडती है , लेकिन उस विवाह को प्रेम का रूप देने के लिए अपने खिलाफ. यहीं मामला बिगड जाता है . खैर जो प्रेमीजन पहले ही मार दिए जाते हैं , वे इस दूसरी वाली विडम्बना से बच जाते हैं .आशुतोष कुमारhttps://www.blogger.com/profile/17099881050749902869noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4615066544544881646.post-84815272882623628182012-10-04T08:42:51.984+05:302012-10-04T08:42:51.984+05:30विवाह का सर्वोत्कृष्ठ रूप केवल स्त्री-पुरुष की समा...विवाह का सर्वोत्कृष्ठ रूप केवल स्त्री-पुरुष की समानता स्थापित होने पर ही संभव है। विवाह के तीन रूप इतिहास में दिखाई देते हैं। यूथ विवाह, युग्म विवाह और एकनिष्ठ विवाह। इन में एकनिष्ठ विवाह सभ्यता के युग में अस्तित्व में आया और इस में लगातार सुधार भी होता रहा है। मोर्गन कहते हैं कि इस में अभी और सुधार हो सकता है और वह उस समय तक होता रहेगा जब तक कि नारी और पुरुष की समानता स्थापित नहीं हो जाएगी। यदि सूदूर भविष्य में एकनिष्ठ परिवार समाज की आवश्यकताओं को पूरा करने में असमर्थ सिद्ध होता है तो आज यह भविष्यवाणी करना असंभव है कि उस का स्थान विवाह का कौन सा रूप लेगा।<br /><br />अब आप इस विषय पर विचार कर ही रही हैं तो आप को एंगेल्स की पुस्तक 'परिवार, निजी संपत्ति और राज्य की उत्पत्ति' तथा Lewis H. Morgan की Ancient Society अवश्य पढ़नी चाहिए। Ancient Society का लिंक http://www.marxists.org/reference/archive/morgan-lewis/ancient-society/ है। दिनेशराय द्विवेदीhttps://www.blogger.com/profile/00350808140545937113noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4615066544544881646.post-69985948459733363562012-10-04T08:42:14.854+05:302012-10-04T08:42:14.854+05:30इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.दिनेशराय द्विवेदीhttps://www.blogger.com/profile/00350808140545937113noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4615066544544881646.post-26654121374755801852012-10-04T08:41:02.177+05:302012-10-04T08:41:02.177+05:30इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.दिनेशराय द्विवेदीhttps://www.blogger.com/profile/00350808140545937113noreply@blogger.com