tag:blogger.com,1999:blog-4615066544544881646.post6199111356857479514..comments2023-07-08T15:20:03.282+05:30Comments on नारीवादी-बहस : स्त्री देह के बाजारीकरण पर सवालों के माध्यम से विचार-विमर्शmuktihttp://www.blogger.com/profile/17129445463729732724noreply@blogger.comBlogger8125tag:blogger.com,1999:blog-4615066544544881646.post-35425794270995032192011-01-24T22:15:27.238+05:302011-01-24T22:15:27.238+05:30विषय बड़ा गंभीर है ...संभल के बात करनी होगी. बाजार...विषय बड़ा गंभीर है ...संभल के बात करनी होगी. बाजारवाद के खेल में पूंजी की शक्ति ही शेष घटकों को नियंत्रित करती है. यहाँ स्त्री-पुरुष का सवाल नहीं, आर्थिक लाभ और सरलता से उपलब्ध साधन का सवाल है. एन-केन प्रकारेण लाभ के लिए सरलता से उपलब्ध होने वाले साधन हैं गरीब, ज़रूरतमंद, कम परिश्रम एवं कम समय में अधिक उपलब्धियां चाहने वाले अति महत्वाकांक्षी, और झांसे में आने वाले या सही निर्णय न कर पाने वाले लोग. ये सभी क्रूर बाजारवाद के निरीह शिकार हैं. इन घटकों में स्त्री कई जगह शामिल हो जाती है. विज्ञापन में स्त्री देह की मांसलता का दुरुपयोग ...न केवल विज्ञापन अपितु अन्य भी कई कार्यों के लिए स्त्री देह का लाभ के लिए स्तेमाल ...बाजारवाद का एक गैरज़रूरी हिस्सा है जिसे पुरुषों नें एक साज़िश के तहत अनिवार्य जैसा बना दिया है. यहाँ हम पुरुष को स्त्री का शोषक मानते हैं. पर एक बात और भी है ..काटने वाला तो तैयार है ही कटने वाला भी तैयार बैठा है काटने के लिए. किन्तु इसके लिए मुझे लगता है व्यवस्था और स्त्री दोनों ही दोषी हैं. आज कई मामलों में स्त्री स्वयं निर्णय ले रही है .....तमाम बाध्यताओं के बाद भी वह अपने हित में अच्छे निर्णय ले सकती है. शिक्षा का जितना उपयोग वह कर सकती थी उसने नहीं किया .....बदले हुए समय में स्त्री की प्राथमिकताओं और मान्यताओं में बहुत परिवर्तन हुआ है. लडकियां अब लिव इन रिलेशनशिप के बारे में गंभीरता से सोच रहीं हैं ....उनकी सुरक्षा के मापदंड बदल रहे हैं ....सही-गलत की परिभाषाएं बदल रही हैं. अब यदि इस नयी सामाजिक संरचना के दुष्परिणाम हुए (ज़ो कि होने ही हैं ) तो इसका सबसे बड़ा खामियाजा किसे भुगतना होगा ? बेशक स्त्री को ही. स्त्री शोषण का फिर एक सिलसिला चल पड़ेगा.बस्तर की अभिव्यक्ति जैसे कोई झरनाhttps://www.blogger.com/profile/11751508655295186269noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4615066544544881646.post-59544099108052954372010-10-05T21:18:39.929+05:302010-10-05T21:18:39.929+05:30विज्ञापित स्त्री के सन्दर्भ में- मेरे हिसाब से नार...विज्ञापित स्त्री के सन्दर्भ में- मेरे हिसाब से नारी स्वालम्बन और सशक्तीकरण ये नही जो चल रहा हैं, समाज की मौजूदा व्यव्स्था का निर्माता पुरूष है, और उसके लिए सभी प्रजातियां हालांकि स्त्री होमोसैपियन्स ही हैं उसके द्वारा बनये गये रंग-मंच पर उसकी(पुरूष) की मर्जी से ही किरदार अदा करती हैं या करायी जाती हैं। स्त्री के महत्व और उसकी विशिष्ठता को समझने के लिए हमें वही नज़र चाहिए जो हम अपनी माँ में देखते है, प्रेम भी इसका सुन्दर कारक बन सकता है बशर्ते प्रेम के उस सर्वस्व रूप को अपने भीतर समझने और उसे अपने से बाहर प्रतिस्थापित कर पाने की कूबत हो फ़िर चाहे वह स्त्री हो या कोई भी अन्य प्रजाति! सारी कुरूपता और विद्रूपता जो हमारे अन्तर्मन में व्याप्त है जिसे इस स्थापित समाज के नियमों और माहौल ने हमें दिया है, अपशिष्ट पदर्थ की तरह बाहर निकल जायेगी।<br /><br />अब इस सुन्दर प्रयास के लिए गुरू, पुस्तकें, और self-reflection जैसी कोई भी कवायद की जा सकती है।<br /><br /> <br /><br />कृष्णDudhwa Livehttps://www.blogger.com/profile/13090138404399697848noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4615066544544881646.post-1628701569037882002010-09-28T21:01:06.621+05:302010-09-28T21:01:06.621+05:30इस पुस्तक को बहुत महत्वपूर्न लोगों द्वारा तैयार कि...इस पुस्तक को बहुत महत्वपूर्न लोगों द्वारा तैयार किया गया है इसलिये यह एक ज़रूरी पुस्तक है ।शरद कोकासhttps://www.blogger.com/profile/09435360513561915427noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4615066544544881646.post-45526733765569981502010-09-23T08:29:23.335+05:302010-09-23T08:29:23.335+05:30बाजारवाद की चपेट में सभी हैं ,क्या नारी क्या पुरुष...बाजारवाद की चपेट में सभी हैं ,क्या नारी क्या पुरुष ! यह मनुष्य के विवेक को कुंठित कर देता है और फिर व्यावसायिकता की नंगी नाच में सब शामिल हो जाते हैं .......रैम्प पर इठलाती सुन्दरी ,फिल्म में अपने जेठ के सामने ठुमके लगाती आईटम दिखाती भयऊ ..ससुर के सामने अंग प्रदर्शन करती घर की ऐश्वर्य-बहू ,न न यह गलत कहाँ ? सब देश काल परिस्थिति के सापेक्ष की स्थितियां हैं ....मगर यह न कहें की औरतें इस लिए दबाई गयी हैं ...<br />पुस्तक परिचय जो खुद आपका ही स्वप्न रूप है पर आभार !Arvind Mishrahttps://www.blogger.com/profile/02231261732951391013noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4615066544544881646.post-51901763754637991762010-09-22T21:16:50.902+05:302010-09-22T21:16:50.902+05:30ज़रूरी किताब लगती है…कैसे मिलेगी देखता हूं…ज़रूरी किताब लगती है…कैसे मिलेगी देखता हूं…Ashok Kumar pandeyhttps://www.blogger.com/profile/12221654927695297650noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4615066544544881646.post-37216411904721990122010-09-22T18:59:44.607+05:302010-09-22T18:59:44.607+05:30पैसा और बाजार स्त्री पुरुष दोनों का ही मन चाहा उपय...पैसा और बाजार स्त्री पुरुष दोनों का ही मन चाहा उपयोग करता है जो जिस काबिल है पर पुरुष के लिए कहा दिया जाता है की वो तो बाजार पैसे के हाथो मजबूर है पर जब बात स्त्री की आती है तो सारा दोष उसके माथे मढ़ दिया जाता है | अब तो पुरुष भी बाजार के लिए देह प्रदर्शन कर रहे है उनको कोई भला बुरा क्यों नहीं कहता क्यों नहीं कहा जाता की हम तो ऐसे पुरुषो के ऐसे काम को ठीक नहीं मानते | एक अच्छे लेख के लिए धन्यवाद |anshumalahttps://www.blogger.com/profile/17980751422312173574noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4615066544544881646.post-54092186937720737562010-09-22T18:36:15.949+05:302010-09-22T18:36:15.949+05:30बिल्कुल सही कहा …………………आज भी पुरूष के हाथों की कठप...बिल्कुल सही कहा …………………आज भी पुरूष के हाथों की कठपुतली ही तो है स्त्री…………जब तक सोच नही बदलेगी कोई बदलाव नही आ सकता।<br />अभी मैने इसी पर लिखा था कि--------पुरुष तुम अब भी कहाँ बदले हो………………उसमे इसी सोच का जिक्र किया है और जो आपके लेख मे है उसे ही कविता मे ढाला है मैने भी…………।फ़ुर्सत मिले तो देखियेगा इस लिंक पर्।<br />http://vandana-zindagi.blogspot.com/2010/09/blog-post_18.htmlvandana guptahttps://www.blogger.com/profile/00019337362157598975noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4615066544544881646.post-62470314191889530332010-09-22T17:24:35.835+05:302010-09-22T17:24:35.835+05:30bahut sahi baat ki aapnebahut sahi baat ki aapneसंजय कुमार चौरसियाhttps://www.blogger.com/profile/06844178233743353853noreply@blogger.com