tag:blogger.com,1999:blog-4615066544544881646.post7367629561332828734..comments2023-07-08T15:20:03.282+05:30Comments on नारीवादी-बहस : संस्कृत नाट्यशास्त्रों में नायक-भेद: कुछ प्रश्नmuktihttp://www.blogger.com/profile/17129445463729732724noreply@blogger.comBlogger4125tag:blogger.com,1999:blog-4615066544544881646.post-54408034477247155172018-12-03T15:44:32.514+05:302018-12-03T15:44:32.514+05:30लिखा कभी व्यर्थ नहीं जाता किसी ना किसी को कभी ना क...लिखा कभी व्यर्थ नहीं जाता किसी ना किसी को कभी ना कभी उसकी जरुरत पड़ ही जाती है | देखिये अपने भरनाट्यम के नायक भेद खोजते हुए आप के ब्लॉग और इस पोस्ट पर आ गई | जल्द ही मैं भी इस पर विस्तार में लिखती हूँ समय मिले तो आप भी कुछ कहियेगा आप को जानकारी निश्चित रूप से मुझसे ज्यादा होगी :)anshumalahttps://www.blogger.com/profile/17980751422312173574noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4615066544544881646.post-8611879392033109942009-11-11T02:34:34.270+05:302009-11-11T02:34:34.270+05:30Aap ki yah post bahut achchhee lagi.
Abhaar mere p...Aap ki yah post bahut achchhee lagi.<br />Abhaar mere prashn ka uttar dene ke liye.<br />Aap se sikhne ko mila iske liye dil se dhnywaad.Alpana Vermahttps://www.blogger.com/profile/08360043006024019346noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4615066544544881646.post-15611507182638731162009-11-10T08:41:50.603+05:302009-11-10T08:41:50.603+05:30मुक्ति जी आप विषय की अधिकारी विद्वान् हैं -आप से ...मुक्ति जी आप विषय की अधिकारी विद्वान् हैं -आप से असहमति का तो कोई बिंदु ही नहीं है ! स्पष्ट है , इंगित साहित्य के सृजन में पुरुषों का ही वर्चस्व रहा तो जाहिर है एकांगी दृष्टिकोण ही उभरा है -मगर क्या हम इन बातों से पृथक केवल मनुष्य की सौन्दर्यानुभूति की विशिष्ट क्षमता का एक समाकलन नहीं कर सकते ! हम कल्पना करें ऐसे समाज की जहाँ नारी का वर्चस्व होता तो क्या वहां नर नारी नख शिख वर्णन का अभाव होता ! मुझे लगता है की इस मानवीय अनुभूति को हम लिंग बोध के नजरिये से देखेगें तो एक उत्कृष्ट मानवीय अभिव्यक्ति के साथ न्याय नहीं कर पायेगें ! <br />आईये आगे बढ़ें ! ध्यान रहे आज हम समतल पर चलें ! <br />सस्नेह ,Arvind Mishrahttps://www.blogger.com/profile/02231261732951391013noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4615066544544881646.post-32569808829071989972009-11-09T01:08:08.962+05:302009-11-09T01:08:08.962+05:30मुक्ति जी !
आपकी आपत्ति जायज है कि अब तक का विव...मुक्ति जी ! <br /> आपकी आपत्ति जायज है कि अब तक का विवेचन (ज्ञान- विज्ञान के विविध <br />शाखाओं में ) पुरुष-सापेक्ष रहा है | गुणों को भी लिंग-विधान के तहत निर्धारित <br />किया गया | अब सवाल है -'' मुस्लिम आक्रमणकारियों के आने से पूर्व भारत <br />में नारी की स्थिति अपेक्षाकृत अच्छी थी.'' का | मुस्लिम आक्रमणकारियों के <br />आने से पूर्व के भारत में एक बहुत बड़ी कालावधि है , और इसी कालावधि में <br />पूर्व-वदिक युग भी आता है ,जहाँ स्त्रियाँ सभा,विदथ आदि में भाग लेतीं थीं और <br />युद्धों में भी जाती थीं | वहां स्त्रियों को अधिकार प्राप्त थे ,यह ऐतिहसिक सच है |<br />अतः आपसे सहमति आंशिक ही बनती है |<br /> एक अच्छा और विचारोत्तक लेख के लिए बधाई .........Amrendra Nath Tripathihttps://www.blogger.com/profile/15162902441907572888noreply@blogger.com