tag:blogger.com,1999:blog-4615066544544881646.post6386991131092000157..comments2023-07-08T15:20:03.282+05:30Comments on नारीवादी-बहस : महिलाओं के प्रति होने वाले अपराधों का साधारणीकरण: लापरवाही या षड्यंत्र?muktihttp://www.blogger.com/profile/17129445463729732724noreply@blogger.comBlogger15125tag:blogger.com,1999:blog-4615066544544881646.post-26532607930298318072017-02-03T23:03:04.233+05:302017-02-03T23:03:04.233+05:30Mukti ji आपकी लिखी लेख बहुत ही पसंद आया और जो आप म...Mukti ji आपकी लिखी लेख बहुत ही पसंद आया और जो आप मेसेज देना चाहती हैं बहुत ही सही हैं | pls visit my siteAchhiposthttp://www.achhipost.comnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4615066544544881646.post-69872983622020238002012-09-28T23:55:59.915+05:302012-09-28T23:55:59.915+05:30शब्द प्रयोगमूलक होते हैं। अनेक बार प्रयोग से नए शब...शब्द प्रयोगमूलक होते हैं। अनेक बार प्रयोग से नए शब्द भी रूढ हो सकते हैं।<br />कई शब्द अर्थ तो सीधा देते है,किंतु कई बार उनसे हमारी संवेदनहीनता ही प्रकट होती है। उनके स्थान पर अन्य शब्दों के प्रयोग से अपराध कम तो नहीं होते,हां हम अपनी शिष्ठता का परिचय अवश्य देते हैं। मसलन,विधवा शब्द का अर्थ स्पष्ट है,किंतु आकाशवाणी समेत कई स्थानों पर अब उनकी जगह मृतक की पत्नी शब्द का इस्तेमाल किया जाता है जिसमें वैधव्य के प्रति करूणा का भाव बना हुआ है।<br /><br />किंतु,बलात्कार के संदर्भ में आपके विचार निश्चय ही विचारणीय हैं।कुमार राधारमणhttps://www.blogger.com/profile/10524372309475376494noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4615066544544881646.post-39323850016137029092012-09-21T07:48:43.353+05:302012-09-21T07:48:43.353+05:30इस दौर में भाषा अखबारी बहुत गजब कर रही है .लडकी के...इस दौर में भाषा अखबारी बहुत गजब कर रही है .लडकी के चेहरे को तेज़ाब से झुलसाने वाले लम्पट ,शातिर को कहा जाता है प्रेमी .शीर्षक बनता है प्रेमी ने लडकी के चेहरे पे तेज़ाब फैंका .<br /><br />गोल मोल बात करतें हैं कई अखबारी लाल -एक वर्ग ने ऐसा कहा,एक ख़ास वर्ग के लोगों ने यहाँ ऐसा किया तोवहां वैसा हो जाएगा अरे मियाँ /भैया कौन है यह एक वर्ग खुलके क्यों नहीं कहते .बे -मतलब में समाज को अल्प संख्यक और बहु संख्यक वर्ग में बाँट रखा है .शब्दों का तोड़ा है इनके पास . भारत धर्मी समाज नहीं कह सकते ये लोग .<br />सवाल यह है कौन कहाँ अल्प या बहुसंख्यक है .पंजाब में अल्प संख्यक कौन है .कश्मीर में कौन हैं ,मुरादाबाद /हैदराबाद /रामपुर/अलीगढ़ में कौन है ?कोई बता सकता है ?चलो बहु संख्यक ही बता दो और क्या अल्प संख्यक का मतलब सिर्फ मुसलमान होता है .<br />गंगा जमुनी में ये जमुनी कौन है ?मुसलमानी ?पारसी क्यों नहीं हो सकती ?सब जानतें हैं जमुना बोले तो मुस्लिम .गंगा बोले तो हिन्दू ये सब देश को तोड़ने की सेकुलर पुत्रों की साजिश है .virendra sharmahttps://www.blogger.com/profile/02192395730821008281noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4615066544544881646.post-84933427290190927482012-09-21T07:33:49.882+05:302012-09-21T07:33:49.882+05:30गनीमत है यहाँ ब्लॉग विमर्श है ब्लॉग फतवा किसी ने ज...गनीमत है यहाँ ब्लॉग विमर्श है ब्लॉग फतवा किसी ने ज़ारी नहीं किया है भगवान् वह दिन न दिखाए .<br /><br />"रंडी -रांड "गाली गलौंच की भाषा में प्रयुक्त होते हमने अपने बचपन में देखा है बृज -मंडल के बुलंदशहर में .<br /><br />किसी को बेवा या विधवा कहना ,किसी को फला की बेवा कहना अब संविधानेतर भाषा क्या अपभाषा में ही गिना जाना चाहिए .<br /><br />रांड का विलोम होता है रंडुवा (रंडुवा )न कि रंडवा जैसा रचना जी ने इस्तेमाल किया है ."स्यापा" अपने आप में यथेष्ट होता है उसमें अतिरिक्त विशेषण लगाना शब्द अपव्यय ही कहलायेगा .<br /><br />रंडापा और स्यापा शब्द का बहुबिध कैसा भी गठजोड़ थेगलिया(थे -गडी - नुमा ,पैबंद नुमा ) सरकारों सा अशोभन प्रयोग है .<br /><br />जो आग खायेगा वह अंगारे हगेगा .शब्द बूमरांग करतें हैं .<br /><br />शब्द सम्हारे बोलिए ,शब्द के हाथ न पाँव ,<br /><br />एक शब्द औषध करे ,एक शब्द करे घाव .virendra sharmahttps://www.blogger.com/profile/02192395730821008281noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4615066544544881646.post-23536088161200930412012-09-21T07:32:29.557+05:302012-09-21T07:32:29.557+05:30आपसे पूरी तरह इत्तेफाक रखतें हैं हम .आपसे पूरी तरह इत्तेफाक रखतें हैं हम .virendra sharmahttps://www.blogger.com/profile/02192395730821008281noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4615066544544881646.post-48374091019484923352012-09-21T07:30:51.114+05:302012-09-21T07:30:51.114+05:30गनीमत है यहाँ ब्लॉग विमर्श है ब्लॉग फतवा किसी ने ज...गनीमत है यहाँ ब्लॉग विमर्श है ब्लॉग फतवा किसी ने ज़ारी नहीं किया है भगवान् वह दिन न दिखाए .<br /><br />"रंडी -रांड "गाली गलौंच की भाषा में प्रयुक्त होते हमने अपने बचपन में देखा है बृज -मंडल के बुलंदशहर में .<br /><br />किसी को बेवा या विधवा कहना ,किसी को फला की बेवा कहना अब संविधानेतर भाषा क्या अपभाषा में ही गिना जाना चाहिए .<br /><br />रांड का विलोम होता है रंडुवा (रंडुवा )न कि रंडवा जैसा रचना जी ने इस्तेमाल किया है ."स्यापा" अपने आप में यथेष्ट होता है उसमें अतिरिक्त विशेषण लगाना शब्द अपव्यय ही कहलायेगा .<br /><br />रंडापा और स्यापा शब्द का बहुबिध कैसा भी गठजोड़ थेगलिया(थे -गडी - नुमा ,पैबंद नुमा ) सरकारों सा अशोभन प्रयोग है .<br /><br />जो आग खायेगा वह अंगारे हगेगा .शब्द बूमरांग करतें हैं .<br /><br />शब्द सम्हारे बोलिए ,शब्द के हाथ न पाँव ,<br /><br />एक शब्द औषध करे ,एक शब्द करे घाव .virendra sharmahttps://www.blogger.com/profile/02192395730821008281noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4615066544544881646.post-55972211765577492072012-09-15T14:44:13.698+05:302012-09-15T14:44:13.698+05:30पहली बात तो यह कि मगरवारा नाम पढकर वे दिन याद आ गय...पहली बात तो यह कि मगरवारा नाम पढकर वे दिन याद आ गये जब हम स्टॆशन पर उतरकर ढ़ाईरुपये में एक पसेरी दशहरी आम खरीद कर खाया करते थे। दूसरी बात यह कि किसी भी शब्द की ध्वनि से अधिक उसके प्रति लोगों की धारण का प्रभाव अधिक होता है। यद्यपि बलात्कार की अपेक्षा यौनहिंसा शब्द अधिक ध्वन्यात्मक है तथापि संवेदनहीन होते जा रहे समाज के लिये किसी भी शब्द का कोई अर्थ नहीं। कोई अर्थ होता तो ये अपराध ही क्यों होते। यह सच है कि लड़कों की अपेक्षा लड़कियाँ यौन हिंसा की अधिक शिकार होती हैं। यह अवसर की सुविधा पर निर्भर करता है कि कौन कब किसका शिकार बन जाय। भारतीय लड़कियों का संकोची स्वभाव भी प्रतिरोध के अवसर को खोने का एक कारण है। बस्तर की अभिव्यक्ति जैसे कोई झरनाhttps://www.blogger.com/profile/11751508655295186269noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4615066544544881646.post-14158084048755339362012-07-03T18:13:57.592+05:302012-07-03T18:13:57.592+05:30I read your post interesting and informative. I am...I read your post interesting and informative. I am doing research on bloggers who use effectively blog for disseminate information.My Thesis titled as "Study on Blogging Pattern Of Selected Bloggers(Indians)".I glad if u wish to participate in my research.Please contact me through mail. Thank you.<br /><br />http://priyarajan-naga.blogspot.in/2012/06/study-on-blogging-pattern-of-selected.htmlPriyarajanhttps://www.blogger.com/profile/12717092696161186302noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4615066544544881646.post-16435413574897633022012-03-01T18:04:57.018+05:302012-03-01T18:04:57.018+05:30महिलाओं के खिलाफ बढ़ती हिंसा के परिप्रेक्ष्य में प...महिलाओं के खिलाफ बढ़ती हिंसा के परिप्रेक्ष्य में पिछले दिनों ऊँचे पदों पर बैठे पुलिस और अन्य प्रशासनिक अधिकारियों के जिस तरह के बयान आए हैं, ऐसे शब्दों का आम होते जाना उसी की एक कड़ी लगता है।<br />...दुःख होता है जिन पर आम जनता विश्वास करती है वे सिर्फ अपनी जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ने के लिए ही यह सब बयान बाजी करते नज़र आते हैं..<br />बहुत बढ़िया चिंतन मनन कराती प्रस्तुति...कविता रावत https://www.blogger.com/profile/17910538120058683581noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4615066544544881646.post-3209667312393224652012-02-20T06:27:14.147+05:302012-02-20T06:27:14.147+05:30गम्भीर विमर्श की मांग करता चिंतन..
------
..ये ह...गम्भीर विमर्श की मांग करता चिंतन..<br /><br />------<br /><b><a href="http://za.samwaad.com/2012/02/popular-hindi-lady-bloggers.html" rel="nofollow">..ये हैं की-बोर्ड वाली औरतें।</a></b>Dr. Zakir Ali Rajnishhttps://www.blogger.com/profile/03629318327237916782noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4615066544544881646.post-68672615329881179382012-02-04T09:58:17.864+05:302012-02-04T09:58:17.864+05:30एक महत्वपूर्ण विषय को उठाया है आपने. किसी सोच को व...एक महत्वपूर्ण विषय को उठाया है आपने. किसी सोच को विकसित करने में मीडिया को वाकई सार्थक भूमिका निभानी चाहिए. इससे संबंधित ऐसे ही एक विषय पर कभी मैंने भी लिखा था- <br /><br />http://ourdharohar.blogspot.com/2011/07/blog-post_30.htmlअभिषेक मिश्रhttps://www.blogger.com/profile/07811268886544203698noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4615066544544881646.post-87378314756849794362012-02-02T16:13:10.331+05:302012-02-02T16:13:10.331+05:30@डॉ. अरविन्द मिश्र,
दरअसल यह समाचार पत्र में छपे ल...@डॉ. अरविन्द मिश्र,<br />दरअसल यह समाचार पत्र में छपे लेख की प्रति है. संपादक द्वारा उसके फॉर्मेट के हिसाब से संपादित करने के कारण ऐसा वाक्य बन गया है. ध्यान से पढ़िए, तो समझ में आ जाएगा. <br />हाँ, आपकी बात से सहमत हूँ कि बाल यौन हिंसा के शिकार छोटे लड़के भी होते हैं. लेकिन उनके साथ भीड़ भरी जगहों पर ऐसा नहीं होता. औरतों के साथ विडम्बना ये है कि सारी ज़िंदगी और लगभग हर जगह यौन-संबंधी अपराध होते रहते हैं. मेरी आपत्ति इन अपराधों के प्रति समाज की असंवेदनशीलता को लेकर है.muktihttps://www.blogger.com/profile/17129445463729732724noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4615066544544881646.post-74424993679531035122012-02-02T16:00:04.931+05:302012-02-02T16:00:04.931+05:30राजन,
आपकी टिप्पणी मुझे सटीक लगी. मेरा यही उद्देश्...राजन,<br />आपकी टिप्पणी मुझे सटीक लगी. मेरा यही उद्देश्य था कि इस विषय पर बहस आगे बढ़े. मुझे लगता है कि जब 'बलात्कार' शब्द में कोई कमी नहीं है, तो उसके स्थान पर 'दुष्कर्म' शब्द क्यों. जबकि बलात्कार शब्द महिलाओं के विरुद्ध एक प्रकार की यौन हिंसा के अर्थ में रूढ़ हो चुका है.muktihttps://www.blogger.com/profile/17129445463729732724noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4615066544544881646.post-78852133460598249872012-02-02T06:34:41.224+05:302012-02-02T06:34:41.224+05:30......वह इस अपराध की गंभीरता और भयावहता को न केवल .........वह इस अपराध की गंभीरता और भयावहता को न केवल कम नहीं करता, <br /><br /><br /><br />दुहरे निषेधात्मक भाव वाले वाक्य अर्थबोध के लिहाज से मुझे असहज करते हैं -क्या इस वाक्य को फिर से पढ़ सम्पादित करना चाहेगीं ...दूसरी बात यह कि लड़कों के साथ भी ऐसे ही अनुभव होते हैं बस फर्क यह है कि समलिंगी उम्र में बड़े लोगों द्वारा -क्या किया जाट इस लैंगिक आक्रामक नर प्रजाति को नेस्तनाबूद ही कर दिया जाय ....पर तब भी क्या यह समस्या दूर होगी ..मुझे लगता है कुदरत के कुछ विद्रूप परिहास तब भी जारी रहेगें!Arvind Mishrahttps://www.blogger.com/profile/02231261732951391013noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4615066544544881646.post-33478354815458801512012-02-01T23:09:07.790+05:302012-02-01T23:09:07.790+05:30मुक्ति जी,
बडो दिनों बाद आपका कोई लेख आया हैं.बहुत...मुक्ति जी,<br />बडो दिनों बाद आपका कोई लेख आया हैं.बहुत ही सारगर्भित बात कही आपने.<br />बचपन के जिस अनुभव की बात आपने की,आप यकीन नहीं करेंगी पर बचपन में ऐसे अनुभव लडकों को भी होते हैं और लोग उनकी तरफ से भी लापरवाह होते हैं.बेशक लडकियों का प्रतिशत ज्यादा हैं.<br />इस बात से सहमत हूँ कि 'इज्जत लुट गई' या 'मुँह काला किया' जैसे मुहावरे उल्टे पीडिता को ही और मानसिक पीडा पहुँचाते हैं इसलिए इनका प्रयोग गलत हैं.लेकिन 'दुष्कर्म' शब्द के बारे में आपने जो कहा उससे असहमति हैं.शायद आपको मेरी बात अजीब लगे पर कह ही देता हूँ.इस शब्द का प्रयोग जिस संदर्भ में किया जाए इसका प्रभाव वैसा ही कम या ज्यादा हो जाता हैं.बलात्कार के संदर्भ में जब इसका प्रयोग किया जाता हैं तो यही बहुत भारी भरकम लगने लगता हैं.मुझे लगता हैं ये शब्द अपराध की गंभीरता को कम नहीं करता.हम कहते हैं चोरी करना पाप हैं या किसीकी हत्या करना पाप है,तब क्या हम चोरी और हत्या को एक जैसा अपराध मान रहे होते है?<br />यौन हमला या यौन हिंसा एक ही बात हैं.<br />कृप्या मेरी बातों से ये न समझें कि मैं समाज के बचाव में तर्क कर रहा हूँ.बल्कि मैं ऐसा करना चाहूँगा तो भी ऐसा नहीं कर सकता.क्योंकि वह तो हमेशा से बलात्कार जैसे अपराध की गंभीरता को कम करने बल्कि इसके लिए महिला को ही दोषी ठहराने का दोषी रहा हैं.बहाने कई तरह के हैं जैसे महिलाओं के कपडे,नर हार्मोन या पश्चिमी संस्कृति आदि.<br />लेकिन इसमें आपको नया क्या नजर आ रहा हैं?पहले कौनसा बलात्कार को बहुत गंभीरता से लिया जाता था?<br />आज तो फिर भी कुछ जागरुक महिलाओं की वजह से हालात थोडे बदले हैं अब कम से कम हम इस पर बहस तो कर सकते हैं वर्ना पहले तो ये भी संभव नहीं था.राजनhttps://www.blogger.com/profile/05766746760112251243noreply@blogger.com