एक सवर्ण स्त्री और एक दलित स्त्री की समस्याओं में क्या अंतर
हैं-? ये पूछते समय लोग यह भूल जाते हैं कि सवर्ण
स्त्री भी दलित स्त्री का छुआ नहीं खाती। उसे उन्हीं हिकारत भरी नज़रों से देखती है।
कई स्त्रियों के साथ होने पर वह खुद को स्त्री होने से ज़्यादा जाति से आइडेंटिफाई
करती दिखती है। लेकिन वह भूल जाती है कि जिस तरह पूंजीवाद ने जाति के नाम पर मजदूरों
को बाँटकर उनका आंदोलन क्षीण कर दिया, उसी तरह से ब्राह्मणवादी
पितृसत्ता ने औरतों को जाति के नाम पर बाँटकर नारीवादी आंदोलन में तेज धार नहीं आने
दी।
नारीवाद से जुड़ी सभी औरतों को ये सोचना होगा...