सोमवार, 23 मार्च 2015

बेदाद ए इश्क रूदाद ए शादी: एक पाठक की नज़र से

'बेदाद ए इश्क रुदाद ए शादी' पहले-पहल किताब का नाम बड़ा अजीब सा लगा था, लेकिन जब अशोक भाई ने फेसबुक पर शेयर किया कि किताब में बागी प्रेम विवाहों के आख्यान हैं, तो इसे पढ़ने के लिए मन उत्सुक हो उठा. पुस्तक मेले से लाने के बाद तीसरे दिन जब इसे पढ़ना शुरू किया तो एक बैठक में पढ़ गयी. जी हाँ, रात के दो बजे से सुबह के दस बजे तक पूरी किताब जैसे एक सांस में पढ़ डाली.  ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि इसमें प्रेम कहानियाँ थीं, लेकिन उससे भी अधिक इसलिए कि वास्तविक कहानियाँ थीं और उन्हीं की ज़ुबानी जिन्होंने निराशा के इस दौर में प्रेम किया और उसे शादी तक पहुँचाने...

शनिवार, 14 मार्च 2015