आमतौर पर मैं किसी के ब्लॉगपोस्ट के प्रत्युत्तर में कुछ कहती नहीं पर ये लेख मैं दूबे जी की पोस्ट के जवाब में लिख रही हूँ. सबसे पहले मैं उनको ये सलाह देना चाहुँगी कि वे महिला संगठनों के बारे में लिखने से पहले कुछ जानकारी जुटा लेते तो अच्छा होता. सबसे पहले मैं उनकी महिला "शरीर के बाज़ारीकरण" की बात का जवाब देना चाहती हूँ. जब हम बाज़ार में महिलाओं के शरीर की नुमाइश के बारे में बात करते हैं तो दोष महिलाओं को देते हैं. हम ये भूल जाते हैं कि लगभग सभी बड़ी विज्ञापन कम्पनियों पर पुरुषों का कब्ज़ा है. हम बात करते हैं कि क्यों कोई महिला संगठन इसका विरोध...