मंगलवार, 23 अक्टूबर 2012

वैदिक एवं आर्ष महाकाव्य युग में स्त्रियों की शिक्षा

इस बात के ठोस प्रमाण उपलब्ध हैं कि वैदिक युग से लेकर आर्ष महाकाव्यों के लिखे जाने तक भारत में लड़कियों की शिक्षा-दीक्षा पर भी उतना ही ध्यान दिया जाता था, जितना कि लड़कों की शिक्षा पर। मैं अपने शोध-कार्य में इस बात की पड़ताल कर रही हूँ कि उसके बाद के समय में ऐसे कौन से परिवर्तन आये कि स्मृतियों में स्त्रियों की शिक्षा का स्पष्ट निषेध कर दिया गया, यहाँ तक कि विवाह को छोड़कर शेष संस्कार भी बिना मन्त्रों के करने का निर्देश दिया गया। यह पोस्ट मेरे शोध कार्य का एक अंश है, जिसमें वैदिक और आर्ष महाकाव्य काल में स्त्रियों की शिक्षा के विषय में चर्चा...

गुरुवार, 4 अक्टूबर 2012

प्रेम, प्रेम विवाह और पितृसत्ता

पिछले कुछ दिनों से इस विषय पर सोच रही थी, अतिव्यस्तता के बाद भी। इसके दो प्रमुख कारण थे - मेरे बेहद करीबी दोस्तों के प्रेम विवाह में आ रही अडचनें और मेरी एक जूनियर द्वारा बार-बार प्रेम के अस्तित्व पर उठाये जा रहे प्रश्न। मेरी  जूनियर इस बात से परेशान है कि जीवन के संघर्ष के दिनों में जो प्रेम किसी का संबल बनता है, सहारा देता है, वही वास्तविक संसार के, यथार्थ के धरातल पर आकर स्वयं क्यों असहाय हो जाता है? जब प्रेम और समाज के सम्बन्धों की समस्या के बारे में सोचती हूँ तो एक दूसरा ही प्रश्न सामने आ खड़ा होता है कि क्या वाकई जिसे हम प्रेम समझ...

बुधवार, 1 फ़रवरी 2012

महिलाओं के प्रति होने वाले अपराधों का साधारणीकरण: लापरवाही या षड्यंत्र?

(यह लेख कल के जनसत्ता में 'दुनिया मेरे आगे' स्तंभ में 'शब्दों से खेल' शीर्षक से छप चुका है.)    बात वहाँ से शुरू होती है, जब एक छोटी-सी लड़की को दुनिया की ऐसी कड़वी सच्चाइयों का सामना करना पड़ता है जिनके चलते वह सामान्य घटनाओं को भी एक खास नजरिए से देखने लग जाती है। मासूम दिल कम उम्र में ही परिपक्व हो जाता है। पिताजी रेलवे में स्टेशन मास्टर...