कुछ दिन पहले मैंने अपने पिता की सम्पत्ति पर अपने अधिकार के सम्बन्ध में श्री दिनेशराय द्विवेदी जी से उनके ब्लॉग 'तीसरा खम्बा' पर एक प्रश्न पूछा था. उनके उत्तर से मैं संतुष्ट भी हो गयी थी और सोचा था कि कुछ दिनों बाद मैं पिता की सम्पत्ति पर अपना दावा प्रस्तुत कर दूँगी. लेकिन मैंने देखा कि जिसे भी इस सम्बन्ध में बात करो, वही ऐसा न करने की सलाह देने लगता है. मैं ऐसे लोगों से कुछ प्रश्न पूछना चाहती हूँ. और साथ ही द्विवेदी जी से भी कुछ प्रश्न हैं इसी सन्दर्भ में.
मेरे पिताजी ने हम तीनों भाई-बहनों का एक समान ढंग से पालन-पोषण किया. उन्होंने कभी...
बुधवार, 8 मई 2013
शुक्रवार, 15 मार्च 2013
कविता-संग्रह "यथास्थिति से टकराते हुए: दलित-स्त्री-जीवन से जुड़ी कविताएँ"
एक सवर्ण स्त्री और एक दलित स्त्री की समस्याओं में क्या अंतर
हैं-? ये पूछते समय लोग यह भूल जाते हैं कि सवर्ण
स्त्री भी दलित स्त्री का छुआ नहीं खाती। उसे उन्हीं हिकारत भरी नज़रों से देखती है।
कई स्त्रियों के साथ होने पर वह खुद को स्त्री होने से ज़्यादा जाति से आइडेंटिफाई
करती दिखती है। लेकिन वह भूल जाती है कि जिस तरह पूंजीवाद ने जाति के नाम पर मजदूरों
को बाँटकर उनका आंदोलन क्षीण कर दिया, उसी तरह से ब्राह्मणवादी
पितृसत्ता ने औरतों को जाति के नाम पर बाँटकर नारीवादी आंदोलन में तेज धार नहीं आने
दी।
नारीवाद से जुड़ी सभी औरतों को ये सोचना होगा...
शुक्रवार, 8 फ़रवरी 2013
एक बेहतर समाज की कोशिश
जब भी औरतों के लिए समानता या स्वतंत्रता की बात होती है, भारतीय पुरुषों का तर्क होता है- "हमारे यहाँ तो पहले से ही औरतों का बड़ा सम्मान है. हमारे यहाँ तो औरतों को देवी माना जाता है. हमें पश्चिम की तरह बनने की ज़रूरत नहीं. देखो अमेरिका की संस्कृति. वहाँ औरतों को आज़ादी मिली तो कैसे घर टूटने लगे. तलाक के केसेज़ बढ़ने लगे." ... उसके बाद वो तर्क देंगे अमेरिका में भारत से कहीं ज्यादा रेप केसेज़ होते हैं. वहाँ औरतों के खिलाफ यौन-हिंसा के मामले भारत से बहुत अधिक हैं.
तो भाई अमेरिका में यौन-हिंसा के मामले इसलिए ज्यादा होते हैं क्योंकि वहाँ यौन-हिंसा की...
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