मेरे एक मित्र ने कहा था कि "हिन्दुस्तान में नब्बे प्रतिशत संयुक्त परिवार इसलिए चल रहे हैं कि स्त्रियाँ 'सह' रही हैं, जिस दिन वे सहना छोड़ देंगी, परिवार भरभराकर ढह जायेंगे." उन्होंने उस मंदिर का जिक्र किया, जहाँ विधवा-विधुर और तलाकशुदा स्त्रियों और पुरुषों का विवाह करवाने के लिए उनके माता-पिता और सम्बन्धी नाम दर्ज कराते हैं. मुझे आश्चर्य हुआ कि ऐसी भी जगहें होती हैं. उन्होंने कहा कि वहाँ ज़्यादा संख्या तलाकशुदा लोगों की ही थी. और तलाक क्यों बढ़ रहे हैं उसका कारण भी उन्होंने यही दिया क्योंकि अब बहुत सी लड़कियाँ 'सह' नहीं रही हैं. पहले लड़कियाँ 'किसी...
बुधवार, 1 अप्रैल 2015
सोमवार, 23 मार्च 2015
बेदाद ए इश्क रूदाद ए शादी: एक पाठक की नज़र से
'बेदाद ए
इश्क रुदाद ए शादी' पहले-पहल
किताब का नाम बड़ा अजीब सा लगा
था, लेकिन जब अशोक
भाई ने फेसबुक पर शेयर किया
कि किताब में बागी प्रेम विवाहों
के आख्यान हैं, तो
इसे पढ़ने के लिए मन उत्सुक हो
उठा. पुस्तक मेले से
लाने के बाद तीसरे दिन जब इसे
पढ़ना शुरू किया तो एक बैठक में
पढ़ गयी. जी हाँ,
रात के दो बजे से सुबह
के दस बजे तक पूरी किताब जैसे
एक सांस में पढ़ डाली.
ऐसा इसलिए
हुआ क्योंकि इसमें प्रेम
कहानियाँ थीं, लेकिन
उससे भी अधिक इसलिए कि वास्तविक
कहानियाँ थीं और उन्हीं की
ज़ुबानी जिन्होंने निराशा के
इस दौर में प्रेम किया और उसे
शादी तक पहुँचाने...
शनिवार, 14 मार्च 2015
भारतीय समाज और लिंग-जाति की अन्तःसम्बद्धता (1)
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