छेड़छाड़ की समस्या हमारे समाज की एक गम्भीर समस्या है. इसके बारे में बातें बहुत होती हैं, परन्तु इसके कारणों को लेकर गम्भीर बहस नहीं हुयी है. अक्सर इसको लेकर महिलाएँ पुरुषों पर दोषारोपण करती रहती हैं और पुरुष सफाई देते रहते हैं, पर मेरे विचार से बात इससे आगे बढ़नी चाहिये.
मैंने पिछले कुछ दिनों ब्लॉगजगत् के कुछ लेखों को पढ़कर और कुछ अपने अनुभवों के आधार पर निष्कर्ष निकाला है कि लोगों के अनुसार छेड़छाड़ की समस्या के कारणों की पड़ताल तीन दृष्टिकोणों से की जा सकती है-
जैविक दृष्टिकोण- जिसके अनुसार पुरुषों की जैविक बनावट ऐसी होती है कि उसमें स्वाभाविक रूप से आक्रामकता होती है. पुरुषों के कुछ जीन्स और कुछ हार्मोन्स (टेस्टोस्टेरोन) होते हैं, जिसके फलस्वरूप वह यौन-क्रिया में ऐक्टिव पार्टनर होता है. यही प्रवृत्ति अनुकूल माहौल पाकर कभी-कभी हावी हो जाती है और छेड़छाड़ में परिणत होती है.
मनोवैज्ञानिक दृष्टिकोण - इसके अनुसार छेड़छाड़ की समस्या कुछ कुत्सित मानसिकता वाले पुरुषों से सम्बन्धित है. सामान्य लोगों से इसका कुछ लेना-देना नहीं है.
समाजवैज्ञानिक दृष्टिकोण-इसके अनुसार इस समस्या की जड़ें कहीं गहरे हमारी समाजीकरण की प्रक्रिया में निहित है. इसकी व्याख्या आगे की जायेगी.
यदि हम इस समस्या को सिर्फ़ जैविक दृष्टि से देखें तो एक निराशाजनक तस्वीर सामने आती है, जिसके अनुसार पुरुषों की श्रेष्ठता की प्रवृत्ति युगों-युगों से ऐसी ही रही है और सभ्यता के विकास के बावजूद कम नहीं हुयी है. इस दृष्टिकोण के अनुसार तो इस समस्या का कोई समाधान ही नहीं हो सकता. लेकिन इस समस्या को जैविक मानने के मार्ग में एक बाधा है. यह समस्या भारत में अलग-अलग क्षेत्रों में भिन्न-भिन्न ढँग से पायी जाती है. जहाँ उत्तर भारत में छेड़छाड़ की घटनाएँ अधिक होती हैं, वहीं दक्षिण भारत में नाममात्र की. इसके अलावा सभी पुरुष इस कुत्सित कर्म में लिप्त नहीं होते. यदि यह समस्या केवल जैविक होती तो सभी जगहों पर और सभी पुरुषों पर ये बात लागू होती. यही बात मनोवैज्ञानिक दृष्टिकोण से देखने पर सामने आती है. लगभग दो-तिहाई पुरुष छेड़छाड़ करते हैं, तो क्या वे सभी मानसिक रूप से "एबनॉर्मल" होते हैं?
नारीवादी छेड़छाड़ की समस्या को सामाजिक मानते हैं. चूँकि समाजीकरण के कारण पुरुषों में इस प्रकार की प्रवृत्ति उत्पन्न होती है कि वे महिलाओं से छेड़छाड़ करें, इसलिये समाजीकरण के द्वारा ही इस समस्या का समाधान हो सकता है. अर्थात् कुछ बातों का ध्यान रखकर, पालन-पोषण में सावधानी बरतकर हम अपने बेटों को "जेंडर सेंसटाइज़" कर सकते हैं. यहाँ पर यह प्रश्न उठ सकता है कि क्या कोई अपने बेटे से यह कहता है कि छेड़छाड़ करो? तो इसका जवाब है-नहीं. यहाँ इस समस्या का जैविक पहलू सामने आता है. हाँ, यह सच है कि पुरुष ऐक्टिव पार्टनर होता है और इस कारण उसमें कुछ आक्रामक गुण होते हैं, पर स्त्री-पुरुष सिर्फ़ नर-मादा नहीं हैं और न ही छेड़छाड़ का यौन-क्रिया से कोई सम्बन्ध है. मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है. अतः समाज में रहने के लिये जिस प्रकार सभ्यता की आवश्यकता होती है, वह होनी चाहिये. हम लड़कों के पालन-पोषण के समय उसकी आक्रामक प्रवृत्तियों को रचनात्मक मोड़ देने के स्थान पर उसको यह एहसास दिलाते हैं कि वह स्त्रियों से श्रेष्ठ है. यह पूरी प्रक्रिया अनजाने में होती है और अनजाने में ही हम अपने बच्चों में लिंग-भेद व्याप्त कर देते हैं.
हमें यह समझना चाहिये कि छेड़छाड़ की समस्या का स्त्री-पुरुष के स्वाभाविक आकर्षण या यौन-सम्बन्धों से कोई सम्बन्ध नहीं है. छेड़छाड़ के द्वारा पुरुष अपनी श्रेष्ठता को स्त्रियों पर स्थापित करना चाहता है और यह उस दम्भ की अभिव्यक्ति है जो समाजीकरण की क्रिया द्वारा उसमें धीरे-धीरे भर जाती है. शेष अगले लेख में...
गुरुवार, 7 जनवरी 2010
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छेड़ छाड़ की घटनाओं के लिए जिम्मेदार कारकों की अच्छी जानकारी प्राप्त हुई ...!!
जवाब देंहटाएंपढ़ा तो ,मगर कुछ कह नहीं सकता, अपुन का कोई फर्स्ट हैण्ड नालेज नहीं इस अनुष्ठान को लेकर और महज किताबी बातें लिखने से कोई फायदा नहीं -तो इस पर मेरा ज्ञान शून्य समझा जाय -सारी !
जवाब देंहटाएंअच्छा विश्लेषण!!
जवाब देंहटाएंसार्थक बहस आरम्भ की है आपने.
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
nice
जवाब देंहटाएंआप की बात सही लगती है। पुरुष की इस प्रवृत्ति का कारण हमारी सामाजिक आर्थिक व्यवस्था ही है।
जवाब देंहटाएंजहाँ तक मेरी समझ है, इसके लिए सिर्फ और सिर्फ हमारी दमित यौन वासनाएं जिम्मेदार हैं, जो हमारे पारिवारिक कारणों के कारण डेवलप होती है। इस बारे में सार्थक जानकारी के लिए ए0एस0 नील की पुस्तक 'समर हिल' देखी जा सकती है।
जवाब देंहटाएं--------
सुरक्षा के नाम पर इज्जत को तार-तार...
बारिश की वो सोंधी खुश्बू क्या कहती है ?
achha visleshan hai aap kim baato se kucch had tak sahmat
जवाब देंहटाएंsaadar
praveen pathik
9971969084
छेड़ छाड़ एक बीमारी है.
जवाब देंहटाएंhttp://epankajsharma.blogspot.com/2010/01/blog-post_08.html
Bahut sahi baat uthai hai logo ko yes samajhna hi padega ki yeh samsya samajik hai aur iska hul bhi samaj main hi hai.
जवाब देंहटाएंEk sarthak bahas...sundar vishleshan.
जवाब देंहटाएंसुलझा चिन्तन । सुन्दर प्रविष्टि । आभार ।
जवाब देंहटाएंअच्छा लेख,...पुरुष मानसिकता शायद नारी की मानसिकता को कभी भी पूरी तरह से समझ न पाए...जहां तक कुंठित हीन वृत्तियों का प्रश्न है इसमें दो राय नहीं हो सकती कि यह अगर छेड़ छाड़ है तो निंदनीय है..पर क्या इसका कोई दूसरा पक्ष है और क्या कथित सौम्य कही जाने वाली छेड़ छाड़ स्वीकार्य अथवा अस्वीकार्य है... इस पर भी नारी वादी दृष्टिकोण से प्रकाश डालें !अच्छे लेख के लिए बधाई और आभार!
जवाब देंहटाएंअच्छा लेख लिखा है। इसके पहले के लेख भी पढ़ने है अभी।
जवाब देंहटाएंछेड़छाड़ के द्वारा पुरुष अपनी श्रेष्ठता को स्त्रियों पर स्थापित करना चाहता है और यह उस दम्भ की अभिव्यक्ति है जो समाजीकरण की क्रिया द्वारा उसमें धीरे-धीरे भर जाती है
जवाब देंहटाएंबिलकुल सही विश्लेशण है। अगली कडी का इन्तज़ार रहेगा। आपने इस मुद्दे को बहुत अच्छे ढंग से उठाया है य समस्या हमारी हमारी सामाजिक व्यवस्था का ही परिनाम है। धन्यवाद्
Aaaj samaj mein aise samshyen bahutayat mein dekhane ko milti hai..... Bahut achha likha hai aapne aaj ki sachhi tasveer. agle ank ke intjaar mein
जवाब देंहटाएं....बिलकुल सही कहा ...कुछ लोग "कुत्ते की दुम" की तरह होते हैं जो "छेडछाड" जैसी हरकतों से बाज नही आते!!!!
जवाब देंहटाएंछेड़छाड़ के द्वारा पुरुष अपनी श्रेष्ठता को स्त्रियों पर स्थापित करना चाहता है और यह उस दम्भ की अभिव्यक्ति है जो समाजीकरण की क्रिया द्वारा उसमें धीरे-धीरे भर जाती है....Ekdam sahi kaha apne...sarthak bahas !!
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया आलेख ......
जवाब देंहटाएंachchha likha mukti ...aage ki pratiksha rahegi.
जवाब देंहटाएंAapse sahmat hun..
जवाब देंहटाएंसार्थक व सतर्क विचार .
जवाब देंहटाएंgoog
जवाब देंहटाएंयहाँ पर यह प्रश्न उठ सकता है कि क्या कोई अपने बेटे से यह कहता है कि छेड़छाड़ करो?
जवाब देंहटाएंजिस वातावरण, पंजाब हरियाणा के जिस भूभाग में मैं बड़ी हुई वहाँ इसका उत्तर हाँ था. आज क्या होता है कह नहीं सकती.तब यदि किसी माँ या पिता के पास शिकायत करो तो यही कहा जाता था की हमारा पुत्र जवान हो गया है अपनी बेटी को सम्भालकर रखो.यह छेडछाड को बढ़ावा देना ही हुआ.
पुरुष होने का दम्भ पुरुष में तो होता ही है किन्तु पुरुष को पैदा करने का दम्भ माँ में कम नहीं होता था.पुत्र जन्म देकर माँ वह सत्ता / शक्ति पा जाती थी जो वह अपने बल पर नहीं पा सकती थी.
घुघूतीबासूती
mam me ak mudha uthana chahti hun es ke kilaf taki se par koi rok lag sake magar
जवाब देंहटाएंme be akile kuch nahi kar sakti agar esme koi sath dega sab mahilaye es ke kilaf ho jayengi to saayad mahilao par atyachar me saayad koi kami aaye ...me be bahut paresaan hun merakise chij me man nahi lagta jab kesi ladki ke sath aaye din kuch na kuch galat hota rehta he ....muji esa lagta he ke agar ham es tarah chup rahe to hamre sath be ak din yahi hoga or ham be es ke bhagidar khud honge agar waqt rehite kuch nahi hua to saayad or atychar badhega magar ghatega nahi.