गुरुवार, 1 जुलाई 2010

प्राचीन भारत में स्त्री

प्राचीन भारत में स्त्रियों की दशा के विषय में इतिहासकारों के अलग-अलग दृष्टिकोण हैं. स्थूल रूप में इन ऐतिहासिक दृष्टिकोणों को चार श्रेणियों में विभाजित किया जा सकता है -
  1. राष्ट्रवादी दृष्टिकोण
  2. वामपंथी दृष्टिकोण
  3. नारीवादी दृष्टिकोण
  4. दलित लेखकों का दृष्टिकोण
    जहाँ राष्ट्रवादी विचारक यह मानते हैं कि वैदिक-युग में भारत में नारी को उच्च-स्थिति प्राप्त थी. नारी की स्थिति में विभिन्न बाह्य कारणों से ह्रास हुआ. परिवर्तित परिस्थितियों के कारण ही नारी पर विभिन्न बन्धन लगा दिये गये जो कि उस युग में अपरिहार्य थे. इसी प्रकार वर्ण-व्यवस्था को भी कर्म पर आधारित और बाद के काल की अपेक्षा लचीला बताते हुये ये विचारक उसका बचाव करते हैं. वामपंथी विचारक राष्ट्रवादी विद्वानों के इन विचारों से सर्वथा असहमत हैं. उनके अनुसार स्त्रियों तथा शूद्रों की अधीन स्थिति तत्कालीन उच्च-वर्ग का षड्यंत्र है, जिससे वे वर्ग-संघर्ष को दबा सकें. उच्च-वर्ग अर्थात्मुख्यतः ब्राह्मण (क्योंकि समाज के लिये नियम बनाने का कार्य ब्राह्मणों का ही था) शूद्रों को अस्पृश्यता के नाम पर तथा नारियों को परिवारवाद के नाम पर संगठित नहीं होने देना चाहते थे.
    नारीवादी विचारक भी राष्ट्रवादी दृष्टिकोण का विरोध करते हैं. उनके अनुसार तत्कालीन सामाजिक ढाँचा पितृसत्तात्मक था और धर्मगुरुओं ने जानबूझकर नारी की अधीनता की स्थिति को बनाये रखा. ये विचारक यह भी नहीं मानते कि वैदिक युग में स्त्रियों की बहुत अच्छी थी, हाँ स्मृतिकाल से अच्छी थी, इस बात पर सहमत हैं. दलित विचारक स्मृतियों और विषेशत मनुस्मृति के कटु आलोचक हैं. वे यह मानते हैं कि शूद्रों की युगों-युगों की दासता इन्हीं स्मृतियों के विविध प्रावधानों का परिणाम है. वे मनुस्मृति के प्रथम अध्याय के ३१वें[i] और ९१वें[ii] श्लोक का मुख्यतः विरोध करते हैं जिनमें क्रमशः शूद्रों की ब्रह्मा की जंघा से उत्पत्ति तथा सभी वर्णों की सेवा शूद्रों का कर्त्तव्य बताया गया है.
     प्राचीन भारत में नारी की स्थिति के विषय में सबसे अधिक विस्तार से वर्णन राष्ट्रवादी विचारक ए.एस. अल्टेकर ने अपनी पुस्तक में किया है. उन्होंने नारी की शिक्षा, विेवाह तथा विवाह-विच्छेद, गृहस्थ जीवन, विधवा की स्थिति, नारी का सार्वजनिक जीवन, धार्मिक जीवन, सम्पत्ति के अधिकार, नारी का पहनावा और रहन-सहन, नारी के प्रति सामान्य दृष्टिकोण आदि पर प्रकाश डाला है. अल्टेकर के अनुसार प्राचीन भारत में वैदिक काल में स्त्रियों की स्थिति समाज और परिवार में उच्च थी, परन्तु पश्चातवर्ती काल में कई कारणों से उसकी स्थिति में ह्रास होता गया. परिवार के भीतर नारी की स्थिति में अवनति का प्रमुख कारण अल्टेकर अनार्य स्त्रियों का प्रवेश मानते हैं. वे नारी को संपत्ति का अधिकार देने, नारी को शासन के पदों से दूर रखने, आर्यों द्वारा पुत्रोत्पत्ति की कामना करने आदि के पीछे के कारणों को जानने का प्रयास करते हैं तथा उन्होंने कई बातों का स्पष्टीकरण भी दिया है. उदाहरण के लिये उनके अनुसार महिलाओं को सम्पत्ति का अधिकार देने का कारण यह है कि उनमें लड़ाकू क्षमता का अभाव होता है, जो कि सम्पत्ति की रक्षा के लिये आवश्यक होता है. इस प्रकार अल्टेकर ने उन अनेक बातों में भारतीय संस्कृति का पक्ष लिया है, जिसके लिये हमारी संस्कृति की आलोचना की जाती है. उन्होंने अपनी पुस्तक के प्रथम संस्करण की भूमिका में स्वयं यह स्वीकार किया है कि निष्पक्ष रहने के प्रयासों के पश्चात्भी वे कहीं-कहीं प्राचीन संस्कृति के पक्ष में हो गये हैं. प्रसिद्ध राष्ट्रवादी इतिहासकार आर. सी. दत्त ने भी अल्तेकर के दृष्टिकोण का समर्थन किया है उनके अनुसार, "महिलाओं को पूरी तरह अलग-अलग रखना और उन पर पाबन्दियाँ लगाना हिन्दू परम्परा नहीं थी. मुसलमानों के आने तक यह बातें बिल्कुल अजनबी थीं... . महिलाओं को ऐसी श्रेष्ठ स्थिति हिन्दुओं के अलावा और किसी प्राचीन राष्ट्र में नहीं दी गयी थी."[iii] शकुन्तला राव शास्त्री ने अपनी पुस्तकवूमेन इन सेक्रेड लॉज़में इसी प्रकार के निष्कर्ष प्रस्तुत किये हैं.
     आधुनिक काल के प्रमुख नारीवादी इतिहासकारों तथा विचारकों ने अल्टेकर और शास्त्री के उपर्युक्त स्पष्टीकरणों की आलोचना की है. आर.सी. दत्त के विरोध में प्रसिद्ध नारीवादी विचारक डा. उमा चक्रवर्ती कहती हैं, "... ... मनु तथा अन्य कानून-निर्माताओं ने लड़कियों की कम उम्र में ही शादी की हिमायत की थी. सातवीं सदी में हर्षवर्धन के प्राम्भिक काल से संबंधित विवरणों में सती-प्रथा उच्च जति की महिलाओं के साथ साफ़ जुड़ी देखी जा सकती है. महिलाओं का अधीनीकरण सुनिश्चित करने वाली संस्थाओं का ढाँचा अपने मूलरूप में मुस्लिम धर्म के उदय से भी काफ़ी पहले अस्तित्व में चुका था. इस्लाम के अनुयायियों का आना तो इन तमाम उत्पीड़क कुरीतियों को वैधता देने के लिये एक आसान बहाना भर है."[iv]
    नारीवादी विचारकों ने यह माना है कि प्राचीन भारत में नारी की स्थिति में ह्रास का कारण हिन्दू समाज की पितृसत्तात्मक संरचना थी कि कोई बाहरी कारण. इसके लिये नारीवादी विचारक प्रमुख दोष स्मृतियों के नारी-सम्बन्धी नकारात्मक प्रावधानों को देते हैं, क्योंकि तत्कालीन समाज में स्मृतिग्रन्थ सामाजिक आचारसंहिता के रूप में मान्य थे और उनमें लिखी बातों का जनजीवन पर व्यापक प्रभाव था. प्रमुख स्मृतियों में नारी-शिक्षा पर रोक, उनका कम उम्र में विवाह करने सम्बन्धी प्रावधान, उनको सम्पत्ति में समान अधिकार देना आदि प्रावधानों के कारण समाज में स्त्रियों की स्थिति में अवनति होती गयी. नारीवादी विचारकों के अनुसार हमें अपनी कमियों का स्पष्टीकरण देने के स्थान पर उनको स्वीकार करना चाहिये ताकि वर्तमान में नारी की दशा में सुधार लाने के उपाय ढूँढे़ जा सकें.


सन्दर्भ :
[i]  “लोकानां तु विवृद्धि अर्थं मुख- बाहु- ऊरु- पादतः
   ब्राह्मणं  क्षत्रिय  वैश्यं  शूद्रं        निरवर्तयत्‌“ /३१ मनुस्मृति.
[ii]  “एकम्एव तु शूद्रस्य प्रभुः कर्म समादिशत्
  एतेषाम्एव वर्णानां  शुश्रूषाम्‌   अनुसूयया/९१ मनुस्मृति.
[iii] पृष्ठ संख्या २३, द सिविलाइजेशन ऑफ इण्डिया, आर.सी. दत्त, प्रकाशक-रूपा कंपनी, नई दिल्ली, २००२.
[iv] पृष्ठ संख्या १२९, अल्टेकेरियन अवधारणा के परे : प्रारंभिक भारतीय इतिहास में जेंडर संबंधों का नई समझ, उमा चक्रवर्ती, नारीवादी राजनीति, संघर्ष एवं मुद्दे, साधना आर्य, निवेदिता मेनन, जिनी लोकनीता, हिन्दी माध्यम कार्यान्वय निदेशालय, दिल्ली विश्वविद्यालय, दिल्ली, २००१.

30 टिप्‍पणियां:

  1. आपने भारत में नारी की स्थिति के ऐतिहासिक संदर्भ और उद्धरण दिए पर विवेचना और निष्पत्ति जिसमे अध्येता का अपना मन्तव्य भी होता है इस पोस्ट में नहीं दे सकी हैं -आगे प्रतीक्षा रहेगी ...
    मुझे तो लगता है कि मूल भारतीय समाज मातृसत्तात्मक ही था और धर्म आदि के विरूपित प्रभाव में नारी की स्थिति दयनीय होती गयी -जिसका चरम इस्लाम के आगमन पर हुआ ....
    विचारणीय लेख !

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  2. @ अरविन्द जी,
    ये लेख मेरे शोध का अंश है, जिसमें पहले ये बताते हैं कि प्राचीन इतिहास में नारी की स्थिति के विषय में कौन से सिद्धांत प्रचलित हैं... उसके बाद प्रमाण एकत्र करते हैं, उसकी विवेचना करते हैं, और तब अपनी बात रखते हैं, निष्कर्ष देते हैं... अभी मैं पहले चरण पर हूँ.
    वैसे मेरा व्यू इन सभी के बीच में कहीं है...मातृसत्तात्मक समाज उस युग में माना जा सकता है, जिस युग में मानव आखेट पर जीवन यापन करता था. इस विषय पर मैं एंगेल्स के दृष्टिकोण से कुछ-कुछ सहमत हूँ... पर अभी बहुत पढ़ाई करनी है... इसलिए तटस्थ रहने का प्रयास कर रही हूँ.

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  3. Hi..

    Aaj kafi samay upraant aapka aalekh padhne ko mila..jiske liye mera dhanyawad sweekaren..

    Aapke aalekh ki vishay-vastu, aapke blog ke anurup hi hai aur koi bhi swatah hi jaan sakta hai ki aap vastutah shodh karya se judi hain..kyon ki aapne apne aalekh main jis prakar se vishay vastu ko shodh parak tathyon main bandha hai wo ek samany vyakti ke liye asambhav hai..

    Aapka sargarbhit aalekh padh kar hame bhi vibhinn vicharkon ke vicharon ko padhne ka saubhagya mila jo shayad jeevan ki aapa-dhapi main hum se log kabhi nahi padh paate..

    Meri vyaktigat rai yahi hai ki pracheen yug main Nari ko uchch sthan prapt tha joki shaneh-shaneh yugon ke parivartan ke saath badalta gaya..tabhi shayad es shlok ka janm hua tha..

    "Yatr nariyasya pujyante..
    Ramante tatr devta.."

    Aaj ke haalat main Naari ko bhale koi doyam darje ki nagrik manta ho par mera ye manna hai ki Nari aaj bhi Pujya hai aur aaj bhi uski sthiti parivarik prushthbhoomi main kendr main hai.. Pratek parivar main wo chahe Maa ho ya Patni ho har parivar main uski prabhuta swatah hi dekhi ja sakti hai.. Aur chunki parivaron se hi samaj ka nirman hota hai, atah samaj main Nari ko aaj bhi kendr sthan uplabhdh hai..

    Jo kuchh thode apvaad hain jaise bete ki hasrat aadi, usme purushon ke saath nari bhi barabar ki doshi hai..
    Ek vakya yaad aa gaya..

    Mere bhai ke beti hui, wo turant ja kar mithai le aaya aur takreeban pure hospital main bantta raha..aur jab wo mithai le kar apni maa yani meri chachi ke paas aaya to meri chachi ne bade upekshit dhang se meethai sweekarte hue kaha.."beti hi to hui hai..meethai kyon bantte fir rahe ho.." ab batayen.. Kaun doshi hai..

    Deepak

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  4. दीपक जी,
    आपकी बात सही है कि भारत में नारी को उच्च स्थान दिया गया है, परन्तु सिर्फ कुछ जगहों पर. किताबों में, सिद्धांत में. अपवाद नारी के साथ होने वाले अपराध नहीं, बल्कि नारी की अच्छी स्थिति अपवाद है. वस्तुतः नारी के साथ सार्वजनिक स्थानों पर होने वाली छेड़छाड़ के विषय में नारी खुद चुप रहती है और घर के अंदर होने वाली हिंसा (शारीरिक या मानसिक) घरेलू बात मान ली जाती है और उसे शोषण की श्रेणी में नहीं रखा जाता है. इसलिए जो पुरुष स्वयं भले हैं और कभी नारी का शोषण नहीं करते उन्हें वस्तुस्थिति का पता ही नहीं चलता. मैंने शोध के साथ ही साथ फील्ड में भी काफी काम किया है और यह बात दावे के साथ कह सकती हूँ कि हमारे देश में नारी की स्थिति अभी भी अच्छी नहीं है. इसका कारण यह है कि हम बही भी उसी भ्रान्ति में जीते हैं कि हमारे यहाँ तो नारी पूज्य है. हमें अपनी आँखे खोलनी होंगी और देखना होगा कि दुनिया सिर्फ हमारा परिवार नहीं है. यदि हम औरतों को आदर देते हैं, तो ज़रूरी नहीं कि और जगहों पर भी ऐसा होता होगा... और नारी की दोयम स्थिति को अपवाद मानने से भी काम नहीं चलेगा... क्योंकि ये सही नहीं है. इस शोषण की जड़े बहुत गहरे सामाजिक संरचना में निहित हैं.
    मैं मानती हूँ कि आप एक अच्छे इंसान हैं और अच्छे लोगों को पूरी दुनिया अच्छी दिखती है. आप स्वयं नारी को सम्मान देते हैं इसलिए सोच भी नहीं सकते कि कुछ पढ़े-लिखे लोग भी औरतों के साथ मारपीट करते हैं और ये बात बाहर तक भी नहीं आती... औरतें खुद इस बात को सार्वजनिक नहीं करना चाहतीं... परिवार टूटने और अपनी बदनामी के डर से... यकीन मानिए यह कोई हाइपोथीसिस नहीं है तथ्य है कि स्थिति बहुत अधिक बदली नहीं है.

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  5. aapki di hui is aham jaankariyon ko bahut dhyan se padhi ,aap bahut sahi kadam ke saath aage badh rahi hai ,magar aaj bhi band darvaajo me kahan koi nihar pata ,kyonki baat niklegi to door talak jayegi ,badnaami naam walon ki door door tak pahunch jayegi .kai shahro me samajsudharak sanstha ,nari aandolan ke jhande tane hai par stithi wahi thahri hai .

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  6. भारत में नारी को सर्बोच्च स्थान है यहाँ तो लक्ष्मी,दुर्गा और सरस्वती क़े रूप में सम्मानित होती है इस नाते ऐसा लगता है की हमारे यहाँ महिलाओ को पहले से पुरुष क़े बराबर सम्मान प्राप्त है.

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  7. आलेख
    अच्छा है और ज्ञान वर्धक भी ...
    सन्दर्भ के इलावा भी
    इसी विषय पर
    एक छोटा-सा अलग लेख लिखें
    ....
    पढ़ें ,,, और पढवाएं

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  8. यह बहुत अच्छा विषय उठाया है आपने । इसे और विस्तार दिया जा सकता है तब इस स्थिति को समग्रता मे समझ जा सकेगा ।

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  9. Prachin bharat mein naari vishyak shodh ke ansh ke prastuti bahut achhi lagi.. esse jahir hota hai aap shodh ko bahut mehnat aur lagan se kar rahi hai..
    Saarthak chintan aur lekhan ke liye Haardik shubhkamnayne

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  10. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

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  11. इस विषय पर लिखती रहें। यह विषय हमारे व हमारी बेटियों के लिए जीवन मरण का सा प्रश्न है।
    घुघूती बासूती

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  12. यह लेख बताता है कि आपका इस विषय में गहन
    अध्ययन है. पढ़ना न केवल रूचिकर लगा अपितु कई प्रश्लों का समाधान भी देता दिखा.
    ..आभार.

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  13. नारीवाद पर एक बहुत ही मेहनत से लिखा गया आलेख ...सिर्फ़ विरोध के लिये विरोध करना और पुराने को दकियानुसी कह कर सिरे से नकार देना , तुम दोनों ही स्थितियों की अतिवादिता से बचती हो ....
    लिखती रहो ऐसे ही कि हमारा भी ग्यानवर्धन होता रहेगा ...!

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  14. @ मैं अपने जीवन में पुरुषों द्वारा सताई गयी हूँ, हालांकि मैंने भी बहुत कुछ झेला है, जो किसी भी भावुक औरत को विद्रोही बनाने के लिए पर्याप्त है...

    अपने जख्मों की नुमाईश यूँ सरेआम ना कर ...
    लोंग हाथों में नमक लिए बैठे हैं ...
    रोकर सुनेंगे ...हँस कर उड़ायेंगे ...
    जब्त कर ...पीना सीख ...
    जख्मों पर हँसना और हंसाना सीख ...!

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  15. इस तथ्यपरक आलेख के लिए बहुत बहुत बधाई |बहुत ही संतुलित आलेख |आप लिखती रहे पढने वालो के विचारो में जरुर परिवर्तन आएगा |
    शुभकामनाये |

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  16. तथ्यपरक, ज्ञानवर्धक..... विस्तार और मेहनत से लिखा गया आलेख ...

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  17. bahut acha likha hai aapne..par kya is condition k piche sirf pursho ka hath hai ya aaurto ka bhi....kya har tarah ki bandishe sirf gals par uchit hai....as my point of view....is samaj ki parwah jitni ki jaye utni hi pareshani uthani padti hai..par samaj ki vichardhara humesha galat disha me hi dorti hai...isliye ek aaurat ki condition sirf wo khud hi teek kar sakti hai..na to koi purush teek kar sakta h na hi koi aur....

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  18. aaurt ko pursho ne is tarha ka kar diya hai ki vo apne shoshan ko bhi shoshan bhi nhi manti hai... kaaran pritsatt.

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    उत्तर
    1. औरत बहुत समवेद्न्शील एवम सहनशील होती,इसी कारण वह अपने ऊपर होने वाले सोशंण को सोशंण नहीं मानती (2) वह जीवन जोड़ने को प्रेरित करती हे ना की तोड़ने का

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  19. Aaj Nari uttatan ki ley kya jaroori hi per dhyan deena hi na ki 2000 vars pahli kya tha.

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  20. Aaj nari uttatan ky liyi ky kaya jai yes per leelko 2000 varsh pahly kya tha oos per khoj si kya .Nari ky liy Education orr Arthic nirverta hi aagy rakh paygi .

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  21. आपका लेख बहुत प्रशंसनीय और वास्तविक परिस्थिति के अनुकूल है | फिरभी देश के उन्नति में नारी का सहयोग पूरी तरह से तब हो सकता है जब हम सबका द्दृष्टिकोंण में निम्नलिखित परिवर्तन आयी :-
    १. जिस घर में बेटा और बेटी दोनों हो तो माँ बाप का प्यार बेटा की तरह अधिक झुक जाता है जो गलत है | सही माने में परवरिश दोनों को बराबर का दर्जा देना चाहिए |
    २. घर में अगर माँ बाप संस्कारी, गुणवान और सरल वर्ताव हो तब बच्चों में भी वही संस्कार पनपने लगते है |
    ३. बहुत से माँ बाप अपनी बेटी की काबिलियत के अनुसार इच्छा पूरी करने में समाज और परिवार के रोक टोक में फंस जाते हैं और पूरा नहीं करते | इन परिस्थितियों में समाज सेवी या अन्य समाज सेवी व्यवस्था का मदद ले |
    ४. बहुतों की धारणा है कि नारी अकेले कहीं आजा नहीं सकती और अकेले रहने में कई दिक्कतों का सामना करना पड़ता है | उन्हें ध्यान देना चाहिए हर नेक इरादे के पीछे एक महान शक्ति छिपी होती है जो समय आने पर ही पता चलता है | बस चाल चलन और संस्कार सही हो तब हर मुसीबत का सामना खुद हो ही जाता है |

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  22. साधारणतः नारी पुरुष के तुलना में अधिक संवेदनशील होती है | प्राचीन नारी और आधुनिक नारी में परिवर्तन समय और हालात का है | प्राचीन भारत की आर्थिक स्थिति स्वर्णिम होने का मुख्य कारण लोगों पर वेद और पुराण का प्रभाव, सच बोलने की प्रवृति और सच्ची घटना को बर्दाश्त करने का सामर्थ्य होना | भारत की आर्थिक स्थिति कमजोर होने के कई कारण हो सकते हैं पर भारत की आर्थिक स्थिति मजबूत करने के लिए हम सब भारतीय को निम्नलिखित प्रयत्न तो अवश्य करना चाहिए जिसमे पुरुष और नारी अपनी कामयाबी के बल बूते पर आगे बढ़े :-
    १. चाहें हम किसी भी प्रान्त के हों हम सबको संस्कृत भाषा का आश्रय लेना होगा जो हमारे वेद और पुराण की नींव है | संस्कृत भाषा का प्रसार और प्रचार अति आवश्यक है |
    २. बच्चों में नर्सरी या लोअर केजी से पंचीवी क्लास तक संस्कृत, चारों वेद, पुराण, नैतिक विज्ञानं से परिचय करा दे तो उनकी मानसिक स्थिति मजबूत हो जाएगी |
    ३ छटवीं क्लास से आठवीं क्लास तक अंग्रेजी, कंप्यूटर, इंटरनेट कम्युनिकेशन, मैथ्स, साइंस, बायोलॉजी, जोलोञ की जानकारी |
    ४. नवमी से बारहमी तक आधुनिक तकनीकी प्रशिक्षण आदि
    ५. आज की इंटरमीडिएट यानि १२ वी तक उपर्युक्त शिक्षा प्रणाली
    ६. स्किल डेवलपमेंट कोर्सेज या प्रोफेशनल कोर्सेज की जानकारी |
    इस प्रकार के डेवलपमेंट के बाद पुरुष और नारी में भेद करीब करीब ख़त्म हो जायेगा |

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बहस चलती रहे, बात निकलती रहे...