शनिवार, 31 जुलाई 2010

मैं ऐसा क्यों करती हूँ?

ये प्रश्न मैंने अपने आप से तब पूछा, जब किसी ने सीधे-सीधे मुझसे पूछ लिया कि मैं ये औरतों वाले मुद्दों के पीछे क्यों पड़ी रहती हूँ??? यह भी कहा कि आप नारीवादियों का बस एक ही काम है औरतों को उनके घर के पुरुषों के खिलाफ भड़काना और पुरुषों के विरुद्ध तरह-तरह के इल्जाम लगाना. आप ये सोच सकते हैं कि कोई मुझसे इतना सब कह गया और मैं सुनती गयी...हाँ, क्योंकि मैं जिस विषय पर शोध कर रही हूँ, जो मेरा मिशन है, उसका पूर्वपक्ष और प्रतिपक्ष सुनना ज़रूरी है. ये देखना ज़रुरी है कि ये मानसिकता हमारे समाज में कितनी गहरी पैठी है कि कोई नारी-सशक्तीकरण की बात सुनना ही...

गुरुवार, 1 जुलाई 2010

प्राचीन भारत में स्त्री

प्राचीन भारत में स्त्रियों की दशा के विषय में इतिहासकारों के अलग-अलग दृष्टिकोण हैं. स्थूल रूप में इन ऐतिहासिक दृष्टिकोणों को चार श्रेणियों में विभाजित किया जा सकता है - राष्ट्रवादी दृष्टिकोण वामपंथी दृष्टिकोण नारीवादी दृष्टिकोण दलित लेखकों का दृष्टिकोण     जहाँ राष्ट्रवादी विचारक यह मानते हैं कि वैदिक-युग में भारत में नारी को उच्च-स्थिति प्राप्त थी. नारी की स्थिति में विभिन्न बाह्य कारणों से ह्रास हुआ. परिवर्तित परिस्थितियों के कारण ही नारी पर विभिन्न बन्धन लगा दिये गये जो कि उस युग में अपरिहार्य थे. इसी प्रकार वर्ण-व्यवस्था...