गुरुवार, 16 अप्रैल 2009

नारीवाद और नारी-सशक्तीकरण

नारीवाद और नारीसशक्तीकरण एक-दूसरे से भिन्न अवश्य हैं, परन्तु विरोधी नहीं। नारीवाद एक दर्शन है,जिसका उद्देश्य है-समाज में नारी की विशेष स्थिति के कारणों का पता लगाना और उसकी बेहतरी के लिये वैकल्पिक समाधान प्रस्तुत करना, जबकि महिला-सशक्तीकरण एक आन्दोलन है,एक कार्य-योजना है,एक प्रक्रिया है,जिसे मुख्यत: सरकार और गैरसरकारी संगठन करते हैं।
नारीवाद चूँकि नारी की समस्याओं का अध्ययन है,इसलिये यह तब तक अप्रसांगिक नहीं हो सकता जब तक कि समाज में नारी और पुरुष एक बराबर की स्थिति में न आ जाएं। women studies में हम दोनों का ही अध्ययन करते हैं- सिद्धांतों का भी और उसके अनुप्रयोगों का भी.
अब प्रश्न उठता है नारीवाद के प्रासंगिक या अप्रासंगिक होने का। नारी-सशक्तीकरण इस समय प्रमुख उद्देश्य है,इस से सभी सहमत हैं,परन्तु सशक्तीकरण की आवश्यकता क्यों है ? इसीलिये क्योंकि नारी अशक्त है। परन्तु नारी अशक्त क्यों और किस तरह है, इसका जवाब नारीवाद ही दे सकता है। नारीवाद ही बता सकता है कि किस समाज में नारी-सशक्तीकरण के कौन-कौन से तरीके या रणनीति अपनानी चाहिये। पर, अफ़सोस अभी हमारे समाज में बहुत से लोग यह मानते ही नहीं कि महिलाओं की स्थिति दोयम दर्ज़े की है। महिलायें किसी भी मामले में पुरुषों से कम नहीं हैं,परन्तु उन्हें अवसरों से वन्चित कर दिया जाता है-नारीवाद ऐसी परिस्थितियों के विषय में बताता है और उस दिशा में प्रयास करने का कार्य ही नारी-सशक्तीकरण कहलाता है।

4 टिप्‍पणियां:

  1. हालत बेहतर हो रही करते लोग प्रयास।
    नारी के सम्मान का स्वर्णिम है इतिहास।।

    सादर
    श्यामल सुमन
    09955373288
    मुश्किलों से भागने की अपनी फितरत है नहीं।
    कोशिशें गर दिल से हो तो जल उठेगी खुद शमां।।
    www.manoramsuman.blogspot.com
    shyamalsuman@gmail.com

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  2. अच्छा लगा की हिन्दी चिठ्ठों में नारी विषयक मुद्दों पर भी कोई कोना है ।अपने शुरुआती परिभाषाएँ देकर नारीवाद से अनजाने पाठको के लिए एक प्रारंभिक जानकारी उपलब्ध कराई है । पर क्या अच्छा हो की किताबों से बाहर निकल कर ठोड़ी बहस समकालीन मुद्दों पर भी हो । आपका ब्लॉग मेरी ब्लॉग लिस्ट में है और भविष्य में कुछ गंभीर बहस की अपेछा रखता हूँ ।

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  3. naaree jab tak ,
    samjhote kartee rahegee ,
    kabhee pati,parivaar ,
    kabhee maryaada,
    kabhee "koee kyaa kahega "ke naam par,
    dropadiyan-
    cheer-haran sahtee rahengee.

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  4. नारीवाद चूँकि नारी की समस्याओं का अध्ययन है,इसलिये यह तब तक अप्रसांगिक नहीं हो सकता जब तक कि समाज में नारी और पुरुष एक बराबर की स्थिति में न आ जाएं।

    bahut achchee baat kahi hai aap ne.

    yun to is vishay par blog jagat mein aksar bahas hoti rahti hai.

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बहस चलती रहे, बात निकलती रहे...