शनिवार, 26 दिसंबर 2009

महिला ब्लॉगर्स बनाम पुरुष ब्लॉगर्स तथा नारीवाद बनाम समानतावाद

आजकल ब्लॉगजगत में महिला ब्लॉगर्स और महिला मुद्दों को लेकर कुछ अधिक चर्चाएँ हो रही हैं. इनमें दो मुद्दे प्रमुख हैं- पहला मुद्दा यह है कि एक लेखक, लेखक होता है. क्या उसे स्त्री या पुरुष के वर्ग में बाँटना उचित है? इस बात से एक और बात निकलती है कि नारी ब्लॉगर्स एक ओर तो स्त्री-पुरुष समानता की बात करते हैं, दूसरी ओर महिला ब्लॉगर का बिल्ला लगाये भी घूमना चाहते हैं. दूसरा मुद्दा यह है कि नारीवाद जब स्त्री-पुरुष दोनों की समानता की बात करता है तो उसे नारीवाद क्यों कहा जाय, समानतावाद क्यों नहीं?  देखने में ये दोनों बातें अलग-अलग लग सकती हैं,परन्तु...

बुधवार, 23 दिसंबर 2009

नारीवाद से सम्बन्धित भ्रान्तियाँ-३(नारीवाद और गृहकार्य)

नारीवाद के विषय में बहुत से लोगों को यह ग़लतफ़हमी भी है कि वह गृहिणियों को उपेक्षित दृष्टि से देखता है और चाहता है कि सभी महिलाएँ गृहकार्य छोड़कर नौकरी करने लग जायें, जबकि असलियत यह है कि सर्वप्रथम नारीवादी आन्दोलन ने ही औरतों के गृहकार्य को भी एक उत्पादक कार्य मानने की वक़ालत की थी.     समाजवादी नारीवाद ने यह सिद्धान्त दिया था कि पूँजीवाद के विकास में औरतों द्वारा किये जाने वाले घरेलू कार्य का बहुत बड़ा योगदान है, जबकि उसे एक अनुत्पादक कार्य मानकर महत्त्व नहीं दिया जाता है. उनके अनुसार घरेलू कार्य निम्न प्रकार से पूँजीवाद को लाभ...

सोमवार, 21 दिसंबर 2009

नारीवाद से सम्बन्धित भ्रान्तियाँ--२ (नारीवाद पुरुष विरोधी है)

नारीवाद को अधिकतर लोग पुरुष-विरोधी समझते हैं. नारीवादी औरत को एक ऐसी एबनॉर्मल, फ़्रस्टेटेड, सख़्तमिजाज़, और झगड़ालू औरत समझा जाता है, जो बात-बात में पुरुषों से झगड़ा कर बैठती है और खोद-खोदकर ऐसे मुद्दे उछालती है, जिससे पुरुषों को नीचा दिखाया जा सके. नारीवादी औरत को लोग अपने व्यक्तिगत जीवन की कुंठा को सार्वजनिक जीवन में लागू करने वाली समझते हैं. लोगों के अनुसार ऐसी औरतें अपने जीवन में सामंजस्य नहीं बैठा पातीं, एडजस्टमेंट नहीं करना चाहतीं और इसका दोष पुरुषों के मत्थे मढ़ती हैं. जबकि अन्य अनेक भ्रान्तियों की तरह यह भी एक भ्रान्ति है. नारीवाद पुरुषों...

गुरुवार, 17 दिसंबर 2009

नारीवाद से सम्बन्धित भ्रान्तियाँ-१ ( नारीवाद पश्चिमी अवधारणा है )

नारीवाद पर अक्सर यह आरोप लगाया जाता है कि वह पश्चिम से आयातित अवधारणा है और उसका भारतीय संस्कृति से कोई लेना-देना नहीं है. प्रतिपक्षियों के अनुसार चूँकि भारत में नारी की पूजा होती है, उसका सर्वोच्च स्थान है. इसलिये नारीवाद की भारतीय समाज में न कोई आवश्यकता कभी थी और न है.     यह बात बिल्कुल सही है कि "नारीवाद" को इस नाम से सर्वप्रथम पश्चिम में ही जाना गया और इसे एक विचारधारा का रूप भी वहीं प्रदान किया गया. परन्तु प्राचीन भारतीय साहित्य में आपको ऐसे उदाहरण मिल जायेंगे , जिनमें नारी का विद्रोही स्वरूप सामने आया है. भले ही नारी के इस...

शुक्रवार, 11 दिसंबर 2009

आप कहाँ खड़े हैं?

    समाज में बहुत से मुद्दे ऐसे हैं, जिन पर लोगों की राय बिल्कुल अलग-अलग होती है, परन्तु नारी की स्थिति से सम्बन्धित बहुत सी ऐसी बातें हैं, जिनके बारे में लोगों को पता ही नहीं होता कि वे क्या सोचते हैं? यहाँ तक कि नारी स्वयं नहीं जानती कि उनकी स्थिति जैसी है, वैसी क्यों है? और वह सही है या ग़लत? समाज में नारी की स्थिति के विषय में निम्नलिखित मत हो सकते हैं- १. स्त्री और पुरुष दोनों में जैविक रूप से भेद है, अतः सामाजिक भेद भी होना चाहिये. इसमें कुछ भी ग़लत नहीं है. दोनों एक-दूसरे के पूरक हैं. जहाँ तक पुरुषों द्वारा स्त्री के शोषण...

शुक्रवार, 4 दिसंबर 2009

नारीवाद से परहेज़ क्यों?

इस ब्लॉग पर मेरी पिछली पोस्ट से किसी को बुरा लगा हो तो मैं क्षमाप्रार्थिनी हूँ. वाणीगीत जी, आपने सच कहा है कि मुझे आपकी टिप्पणी को इतने हल्के में नहीं लेना चाहिये था. पर विश्वास कीजिये मेरा तात्पर्य किसी मुद्दे को उछालकर विवादित बनाने का बिल्कुल नहीं था. मेरा उद्देश्य तो नारीवाद और नारीवादियों को लेकर कुछ ग़लतफ़हमियों को दूर करना था. वस्तुतः मैंने इस ब्लॉग को आरम्भ ही किया था नारीवाद से सम्बन्धित कुछ सैद्धान्तिक बातों को स्पष्ट करने के लिये. नारी से सम्बन्धित समस्याओं,विमर्शों और व्यावहारिक मुद्दों पर अन्य लोकप्रिय और महत्त्वपूर्ण ब्लॉग हैं, जिनमें...

बुधवार, 2 दिसंबर 2009

नारी, प्रेम और नारीवादी

परसों एक कविता लिखी औरत के प्रेम के पागलपन पर, कमेंट मिला कि यह किसी नारीवादी की कविता नहीं हो सकती. सही बात है. इसी प्रेम वाली बात को लेकर मेरे कई वामपंथी दोस्तों को मेरे ब्लॉग का "फ़ेमिनिस्ट पोएम्स" शीर्षक नहीं ठीक लगता. वे कहते हैं कि या तो ये शीर्षक हटा दो या इस पर प्रेम की कविताएँ मत लिखो. पर, मैं अपने भावों को किसी वाद में बाँधने के पक्ष में नहीं.      अब मैं मुद्दे पर आ जाती हूँ. प्रेम प्रकृति का एक अनुपम उपहार है, स्त्री और पुरुष दोनों के लिये. दोनों ही प्यार करते हैं और प्यार में पागल भी होते हैं. पर दोनों के प्रेम के परिणाम...