मंगलवार, 12 अक्टूबर 2010

पश्चिमी नारीवाद बनाम भारतीय नारीवाद

आमतौर पर नारीवाद की बात चलने पर यह प्रश्न सभी के मन में उठता है कि नारीवाद की पाश्चात्य अवधारणा का भारत में क्या उपयोग है? और ये प्रश्न कुछ हद तक वाजिब भी है. खासकर के तब जब नारीवाद पर खुद पश्चिम में ही कई सवाल उठने लगे हों. दरअसल, पश्चिम में नारीवाद एक विचारधारा के रूप में उभरकर तब सामने आया, जब वहाँ की औरतों को मूलभूत अधिकार प्राप्त हो चुके थे....

बुधवार, 22 सितंबर 2010

स्त्री देह के बाजारीकरण पर सवालों के माध्यम से विचार-विमर्श

आमतौर पर हम समाज में घटने वाली घटनाओं को तो देखते हैं, पर उनके पीछे के कारणों को जानने का कभी प्रयास नहीं करते हैं. आज की नारी को बदलती सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक व्यवस्था के चलते पहले की अपेक्षा बहुत सी सहूलियतें मिली हैं. इतनी कि उन्हें मुक्त मान लिया गया है. जब हम माडलों, हिरोइनों और अन्य पेशों में आगे बढ़ती औरत को देखते हैं, तो ये मान बैठते...

शनिवार, 31 जुलाई 2010

मैं ऐसा क्यों करती हूँ?

ये प्रश्न मैंने अपने आप से तब पूछा, जब किसी ने सीधे-सीधे मुझसे पूछ लिया कि मैं ये औरतों वाले मुद्दों के पीछे क्यों पड़ी रहती हूँ??? यह भी कहा कि आप नारीवादियों का बस एक ही काम है औरतों को उनके घर के पुरुषों के खिलाफ भड़काना और पुरुषों के विरुद्ध तरह-तरह के इल्जाम लगाना. आप ये सोच सकते हैं कि कोई मुझसे इतना सब कह गया और मैं सुनती गयी...हाँ, क्योंकि मैं जिस विषय पर शोध कर रही हूँ, जो मेरा मिशन है, उसका पूर्वपक्ष और प्रतिपक्ष सुनना ज़रूरी है. ये देखना ज़रुरी है कि ये मानसिकता हमारे समाज में कितनी गहरी पैठी है कि कोई नारी-सशक्तीकरण की बात सुनना ही...

गुरुवार, 1 जुलाई 2010

प्राचीन भारत में स्त्री

प्राचीन भारत में स्त्रियों की दशा के विषय में इतिहासकारों के अलग-अलग दृष्टिकोण हैं. स्थूल रूप में इन ऐतिहासिक दृष्टिकोणों को चार श्रेणियों में विभाजित किया जा सकता है - राष्ट्रवादी दृष्टिकोण वामपंथी दृष्टिकोण नारीवादी दृष्टिकोण दलित लेखकों का दृष्टिकोण     जहाँ राष्ट्रवादी विचारक यह मानते हैं कि वैदिक-युग में भारत में नारी को उच्च-स्थिति प्राप्त थी. नारी की स्थिति में विभिन्न बाह्य कारणों से ह्रास हुआ. परिवर्तित परिस्थितियों के कारण ही नारी पर विभिन्न बन्धन लगा दिये गये जो कि उस युग में अपरिहार्य थे. इसी प्रकार वर्ण-व्यवस्था...

शुक्रवार, 18 जून 2010

लिंग समानता बनाम नारी-सशक्तीकरण

    ये पोस्ट मेरे शोध कार्य का अंश है. मैं इस विषय पर शोध कर रही हूँ कि किस प्रकार हमारे धर्मशास्त्रों ने नारी-सशक्तीकरण पर प्रभाव डाला है? क्या ये प्रभाव मात्र नकारात्मक है अथवा सकारात्मक भी है? जहाँ एक ओर हम मनुस्मृति के "यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते" वाला श्लोक उद्धृत करके ये बताने का प्रयास करते हैं कि हमारे देश में प्राचीनकाल में नारी...

मंगलवार, 30 मार्च 2010

छेड़छाड़ की समस्या : समाधान के कुछ सुझाव (2.)

हम प्रायः इस ग़लतफ़हमी में रहते हैं कि हमारे घर-परिवार के पुरुष सदस्य छेड़छाड़ कर ही नहीं सकते और जब ऐसा हो जाता है, तो हम या फिर आश्चर्य करते हैं या उनके अपराध को छिपाने की कोशिश. ऐसा बहुत से केसों में देखने को मिला है कि अपराधी के घर वाले उल्टा पीड़ित पर ही आरोप लगाने लगते हैं. अभी कुछ दिनों पहले का चर्चित केस है. पूर्वी यू.पी. के एक लड़के ने गोवा...

शनिवार, 20 मार्च 2010

भारत में नारीवाद की क्या आवश्यकता है???

मैं छेड़छाड़ की समस्या पर एक श्रृँखला लिख रही थी, जिसकी समापन किस्त तैयार करके रखी है. बस टाइप करनी है. पर इसी बीच मेरे एक मित्र ने एक लेख लिखा जिसका शीर्षक है-"Do We Need Feminism At All?" मैं अपने इस लेख के माध्यम से उसका उत्तर देने का प्रयास कर रही हूँ.यद्यपि अपने एक लेख में मैं पहले भी लिख चुकी हूँ कि जब हम यह कहते हैं कि नारीवाद की भारत में क्या ज़रूरत है? तो यह मानकर चलते हैं कि यह एक पश्चिम की अवधारणा है, जबकि ऐसा नहीं है. इसके उद्धरण में मैंने कुछ प्राचीन साहित्य और स्मृतियों के अंश दिये थे.       इस बात का...

रविवार, 14 फ़रवरी 2010

छेड़छाड़ की समस्या: समाधान के कुछ सुझाव (1.)

पिछली पोस्ट में मैंने छेड़छाड़ के कारणों को ढूढ़ने का प्रयास किया था. इस बार मैं कुछ समाधान सुझाने की कोशिश कर रही हूँ. इसके पहले मैं स्पष्ट कर दूँ कि छेड़छाड़ से मेरा मतलब उस घटिया हरकत से है, जिसे यौन-शोषण की श्रेणी में रखा जाता है. यह वो हल्की-फुल्की छींटाकशी नहीं है, जो विपरीतलिंगियों में स्वाभाविक है, क्योंकि वह कोई समस्या नहीं है. कोई भी इस प्रकार की हरकत समस्या तब बनती है, जब वह समाज के किसी एक वर्ग को कष्ट या हानि पहुँचाने लगती है. समस्या यह है कि हम यौनशोषण को तो बलात्कार से तात्पर्यित करने लगते हैं और छेड़छाड़ को हल्की-फुल्की छींटाकशी...

गुरुवार, 7 जनवरी 2010

छेड़छाड़ की समस्या के कारणों की पड़ताल

     छेड़छाड़ की समस्या हमारे समाज की एक गम्भीर समस्या है. इसके बारे में बातें बहुत होती हैं, परन्तु इसके कारणों को लेकर गम्भीर बहस नहीं हुयी है. अक्सर इसको लेकर महिलाएँ पुरुषों पर दोषारोपण करती रहती हैं और पुरुष सफाई देते रहते हैं, पर मेरे विचार से बात इससे आगे बढ़नी चाहिये.     मैंने पिछले कुछ दिनों ब्लॉगजगत्‌ के कुछ लेखों को पढ़कर और कुछ अपने अनुभवों के आधार पर निष्कर्ष निकाला है कि लोगों के अनुसार छेड़छाड़ की समस्या के कारणों की पड़ताल तीन दृष्टिकोणों से की जा सकती है- जैविक दृष्टिकोण- जिसके अनुसार पुरुषों की जैविक...

सोमवार, 4 जनवरी 2010

स्त्रीलिंग-पुल्लिंग विवाद के व्यापक संदर्भ

स्त्रीलिंग-पुल्लिंग विवाद भले ही सबको निरर्थक बहस लगती हो, परन्तु नारीवादी आन्दोलन में भाषा के इस विवाद के व्यापक मायने हैं. जैसा कि हम जानते हैं कि हमारे समाज में स्त्री-पुरुष के कार्यक्षेत्र तय थे और इसी अनुसार भाषा भी विकसित होती गयी. भाषा लोकानुगामिनी होती है. जो शब्द प्रचलन में होते हैं वे भाषा का अंग बन जाते हैं और इस प्रकार भाषा हमारे समाज की मनोवृत्ति को दर्शाती है. समाज में चूँकि घर के अन्दर के कार्य औरतें करती हैं, इसलिये "गृहिणी" शब्द स्त्रीलिंग है और बाहर का कार्य पुरुष करते हैं, इसलिये समाज के सभी महत्त्वपूर्ण पदों से सम्बन्धित शब्द...