शनिवार, 8 अप्रैल 2023

संयुक्त हिन्दू परिवार की पैतृक सम्पत्ति में महिलाओं का अधिकार

संयुक्त हिन्दू परिवार में पैतृक सम्पत्ति में महिलाओं का अधिकार भारत में संयुक्त हिन्दू परिवार में पैतृक सम्पत्ति में महिलाओं का अधिकार नहीं था। भारतीय परंपरा में किसी संयुक्त परिवार की पैतृक सम्पत्ति मुख्यतः उसके पुरुष सदस्यों के मध्य ही विभाजित होती रही है। इसके अनुसार घर का मुखिया पिता होता हैपरिवा और वही पैतृक संपत्ति का स्वामी...

सोमवार, 20 मार्च 2023

हिन्दू स्त्रियों के सम्पत्ति -सम्बन्धी अधिकार (1.) स्त्रीधन क्या है?

प्राचीनकाल की अन्य सभ्यताओं की तरह ही भारतीय समाज भी पुरुषप्रधान था, जिसमें सम्पत्ति के उत्तराधिकार की पितृवंशीय व्यवस्था थी। इसके अंतर्गत किसी भी वंश या परिवार की संयुक्त सम्पत्ति (जो कि प्रायः कृषि भूमि के रूप में होती थी) पितामह से पिता को और उससे पुत्रों को प्राप्त होती थी। आज स्थिति बदल चुकी है। बेटियों को भी बेटों के ही समान पैतृक सम्पत्ति का उत्तराधिकार दिलाने वाला संशोधन लागू हो चुका है। लेकिन अब भी अधिकाँश महिलाओं को अपने आर्थिक अधिकारों के विषय में ज्ञान नहीं है। यह लेख स्त्रियों को उनके अधिकारों के विषय मेन जागरुक करने का एक प्रयास है। स्त्रीधन...

शुक्रवार, 10 मार्च 2023

प्राचीन भारत में स्त्रियों की स्थिति के सम्बन्ध में विभिन्न दृष्टिकोण

(प्रस्तुत लेख मेरे शोध-कार्य "मनुस्मृति एवं याज्ञवल्क्यस्मृति के नारी-संबंधी प्रावधानों का नारी-सशक्तीकरण पर प्रभाव" का अंश है. इसलिए अधूरा भी लग सकता है और हो सकता है कि कहीं और भी पढ़ा जा चुका है. वैसे सन्दर्भ-ग्रंथों के नाम भी दे दिए गए हैं)प्राचीन भारत में स्त्रियों की दशा के विषय में इतिहासकारों के अलग-अलग दृष्टिकोण हैं. कुछ विचारक यह मानते हैं कि प्राचीनकाल में स्त्रियों की स्थिति बहुत अच्छी थी और उन्हें पुरुषों के समान अधिकार प्राप्त थे. वहीं कुछ विचारक इस बात का विरोध करते हैं. उनका कहना है कि प्राचीनकाल मुख्यतः वैदिककाल में स्त्रियों की...

सोमवार, 18 मार्च 2019

बुधवार, 1 अप्रैल 2015

परम्परागत विवाह या...

मेरे एक मित्र ने कहा था कि "हिन्दुस्तान में नब्बे प्रतिशत संयुक्त परिवार इसलिए चल रहे हैं कि स्त्रियाँ 'सह' रही हैं, जिस दिन वे सहना छोड़ देंगी, परिवार भरभराकर ढह जायेंगे." उन्होंने उस मंदिर का जिक्र किया, जहाँ विधवा-विधुर और तलाकशुदा स्त्रियों और पुरुषों का विवाह करवाने के लिए उनके माता-पिता और सम्बन्धी नाम दर्ज कराते हैं. मुझे आश्चर्य हुआ कि ऐसी भी जगहें होती हैं. उन्होंने कहा कि वहाँ ज़्यादा संख्या तलाकशुदा लोगों की ही थी. और तलाक क्यों बढ़ रहे हैं उसका कारण भी उन्होंने यही दिया क्योंकि अब बहुत सी लड़कियाँ 'सह' नहीं रही हैं. पहले लड़कियाँ 'किसी...

सोमवार, 23 मार्च 2015

बेदाद ए इश्क रूदाद ए शादी: एक पाठक की नज़र से

'बेदाद ए इश्क रुदाद ए शादी' पहले-पहल किताब का नाम बड़ा अजीब सा लगा था, लेकिन जब अशोक भाई ने फेसबुक पर शेयर किया कि किताब में बागी प्रेम विवाहों के आख्यान हैं, तो इसे पढ़ने के लिए मन उत्सुक हो उठा. पुस्तक मेले से लाने के बाद तीसरे दिन जब इसे पढ़ना शुरू किया तो एक बैठक में पढ़ गयी. जी हाँ, रात के दो बजे से सुबह के दस बजे तक पूरी किताब जैसे एक सांस में पढ़ डाली.  ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि इसमें प्रेम कहानियाँ थीं, लेकिन उससे भी अधिक इसलिए कि वास्तविक कहानियाँ थीं और उन्हीं की ज़ुबानी जिन्होंने निराशा के इस दौर में प्रेम किया और उसे शादी तक पहुँचाने...