बुधवार, 1 फ़रवरी 2012

महिलाओं के प्रति होने वाले अपराधों का साधारणीकरण: लापरवाही या षड्यंत्र?

(यह लेख कल के जनसत्ता में 'दुनिया मेरे आगे' स्तंभ में 'शब्दों से खेल' शीर्षक से छप चुका है.)
  
बात वहाँ से शुरू होती है, जब एक छोटी-सी लड़की को दुनिया की ऐसी कड़वी सच्चाइयों का सामना करना पड़ता है जिनके चलते वह सामान्य घटनाओं को भी एक खास नजरिए से देखने लग जाती है। मासूम दिल कम उम्र में ही परिपक्व हो जाता है। पिताजी रेलवे में स्टेशन मास्टर थे। जब मैं दस साल की थी, उनका तबादला उत्तर रेलवे के उन्नाव स्टेशन के पड़ोस में एक छोटे-से रेलवे स्टेशन मगरवारा में हो गया। मुझे चार साल तक मगरवारा से उन्नाव स्थित अपने स्कूल ट्रेन से आना-जाना पड़ता। भीड़ होने पर लोग छोटी बच्ची जान कर अपने पास जगह बनाकर बिठा लेते। एक-दो साल बाद लोगों के स्पर्श में मुझे अजीब-सा बदलाव महसूस होने लगा। अनचाहा स्पर्श मन में वितृष्णा भर देता। बचपन से किशोरावस्था की ओर बढ़ती एक लड़की पर ऐसी घटनाओं का क्या प्रभाव पड़ता है, यह एक लड़की ही समझ सकती है। अनजाने में मैं खुद को ही इसका दोषी समझने लगी। ऐसा लगता जैसे मेरे शरीर में ही ऐसी कोई कमी है कि लोग मेरे साथ ऐसी हरकत करते हैं।
कुछ साल बाद इलाहाबाद में छात्रावास में रहते और ‘स्त्री अधिकार संगठन’ के साथ काम करते हुए पता चला कि अधिकतर लड़कियाँ इसी तरह के कड़वे अनुभवों से गुजरी हैं। पर मुझे तब बहुत आश्चर्य होता, जब हमारे पुरुष मित्र और रिश्तेदार कहते कि ‘क्या लड़कियाँ छेड़छाड़ नहीं करतीं?’ जो घटनाएँ लड़कियों के मन-मस्तिष्क को झिंझोड़कर खुद को ही दोषी मानने पर मजबूर कर देती हैं, उसे कोई इतने हल्के ढंग से कैसे ले सकता है? कहीं ऐसा तो नहीं था कि वैसी हरकतों के लिए ‘छेड़छाड़’ के बजाय हम कोई सही शब्द नहीं खोज पा रहे थे? तब मुझे नहीं लगा कि मैं इसे ‘यौन हिंसा’ कहूँ, क्योंकि उस उम्र में तो बस इतना समझ में आता था कि यह व्यक्ति जो कर रहा है, वह ठीक नहीं है। उस समय मन जिस तरह घृणा से भर जाता था, उसके लिए ‘छेड़छाड़’ सच में हल्का शब्द है।
अकादमिक क्षेत्रों में नारीवादी सोच के लोग ऐसी माँगें उठाते रहे हैं और ‘जेंडर’ के नजरिए से संवेदनशील शब्दों को लेकर एक स्तर तक समझ भी बनी है। लेकिन हमारा समाज और उसका प्रतिनिधित्व करने का दावा करने वाला मीडिया इस मामले में अब तक जरूरी संवेदनशीलता नहीं बरत रहा है। यहां तक कि ‘बलात्कार’ जैसे जघन्य अपराधों में भी मीडिया की कोशिश होती है कि इसके लिए अपेक्षया हल्के शब्दों का इस्तेमाल किया जाए। आमतौर पर बलात्कार की घटनाओं से संबंधित खबरें संवेदनहीन तरीके से ऐसे पेश की जाती हैं कि तथाकथित सभ्य समाज के कुत्सित मानसिकता वाले लोग उसे चटखारे लेकर पढ़ते हैं। कभी इसके लिए ‘इज्जत लुट गई’ तो कभी ‘मुँह काला किया’ जैसे जुमलों का इस्तेमाल किया जाता रहा है। ये सभी शब्द महिलाओं के प्रति अपमानजनक और एक तरह से पीड़ित को ही दोषी सिद्ध करने वाले रहे हैं। 
समय के साथ किसी औरत के शरीर पर हमला करके जबरन उसका यौन-उत्पीड़न करने जैसे जघन्य कृत्य को ‘बलात्कार’ शब्द के जरिए व्यक्त किया जाने लगा। इस शब्द में जाहिर बलाघात इस अपराध की भयावहता को दर्शाता है। लेकिन पिछले कुछ समय से अखबारों या टीवी चैनलों में बलात्कार की जगह ‘दुष्कर्म’ और यहाँ तक कि ‘ज्यादती’ जैसे शब्दों तक का इस्तेमाल धड़ल्ले से किया जाने लगा है। ‘दुष्कर्म’ शब्द अपने आप में चोरी, डकैती, जेब काटने तक को व्यक्त करता है। सवाल है कि क्या बलात्कार जैसे गंभीरतम अपराध को चोरी या जेब काटने जैसे अपराधों के समकक्ष करके देखा जा सकता है? सच्चाई यह है कि ‘दुष्कर्म’ जैसे शब्दों का प्रयोग बलात्कार को बेहद मामूली अपराधों के समकक्ष ला खड़ा करता है तो ‘ज्यादती’ इस लिहाज से और भी आपत्तिजनक प्रयोग है।
महिलाओं के खिलाफ बढ़ती हिंसा के परिप्रेक्ष्य में पिछले दिनों ऊँचे पदों पर बैठे पुलिस और अन्य प्रशासनिक अधिकारियों के जिस तरह के बयान आए हैं, ऐसे शब्दों का आम होते जाना उसी की एक कड़ी लगता है। कभी कोई कहता है कि ‘औरतों को देर रात अकेले घर से बाहर निकालना नहीं चाहिए’ तो कभी कहा जाता है कि ‘बड़े-बड़े महानगरों में छोटे-मोटे अपराध होते ही रहते हैं’ और कभी लड़कियों की वेशभूषा पर ही सवाल उठा दिया जाता है।
हाल ही में ‘रेप’ की जगह ‘सेक्सुअल असॉल्ट’ शब्द प्रयोग करने का सुझाव सामने आया है। यानी एक ओर अंग्रेजी में इस अपराध का दायरा बढ़ाने के लिए जिस ‘यौन हमला’ शब्द का विकल्प रखा गया है, वह इस अपराध की गंभीरता और भयावहता को न केवल कम नहीं करता, बल्कि अर्थ के भाव और असर की गहराई को भी बनाए रखता है। लेकिन हिंदी में बलात्कार की जगह दुष्कर्म शब्द का प्रयोग अगर आम होता जा रहा है तो इसे व्यवस्था द्वारा महिलाओं के खिलाफ होने वाले अपराधों के साधारणीकरण के एक षड्यंत्र के तौर पर देखा जाना चाहिए। इसमें मीडिया एक बड़े मददगार की भूमिका निभा रहा है।