शनिवार, 15 जनवरी 2011

पुस्तक-सूची



स्त्री विमर्श : कुछ पठनीय पुस्तकें 

देह की राजनीति से देश की राजनीति तक - मृणाल पांडे
परिधि पर स्त्री - मृणाल पांडे
बंद गलियों के विरुद्ध - मृणाल पांडे
जहाँ औरतें गढ़ी जाती हैं - मृणाल पांडे
दुर्ग द्वार पर दस्तक - कात्यायनी
स्त्री का समय - क्षमा शर्मा
स्त्रीत्व का मानचित्र - अनामिका
हौवा की बेटी - दिव्या जैन
उपनिवेश में स्त्री - प्रभा खेतान
हम सभ्य औरतें - मनीषा
औरत के लिए औरत - नासिरा शर्मा
खुली खिड़कियाँ - मैत्रेयी पुष्पा
औरत के हक में - तसलीमा नसरीन
स्त्री संघर्ष का इतिहास - राधा कुमार
साम्प्रदायिक दंगे और नारी - नूतन सिन्हा
संघर्ष के बीच संघर्ष के बीज - इलीना सेन
स्त्रीवादी साहित्य विमर्श - जगदीश्वर चतुर्वेदी
अधीन ज़मीन - उपेन्द्र नाथ अश्क
रेणु की नारी दृष्टि - डॉ. अल्पना तिवारी
चुकते नहीं सवाल - मृदुला गर्ग
नारी प्रश्न - सरला माहेश्वरी
स्वागत है बेटी - विभा देवसरे
जीवन की तनी डोर ये स्त्रियाँ - नीलम कुलश्रेष्ठ
स्त्री पुरुष कुछ पुनर्विचार - राजकिशोर
स्त्री के लिए जगह - सं. राजकिशोर
स्त्रीत्ववादी विमर्श समाज और साहित्य - क्षमा शर्मा
स्त्री : मुक्ति का सपना - सं. प्रो. कमला प्रसाद, राजेन्द्र शर्मा, अतिथि सं. अरविन्द जैन व लीलाधर मंडलोई
धर्म के नाम पर - गीतेश शर्मा
स्त्री उपेक्षिता - सीमोन द बुआ
विद्रोही स्त्री - जर्मन ग्रेयर
स्त्री अधिकारों का औचित्य साधन - मेरी वोल्स्टनक्राफ्ट
औरत की कहानी - सं. सुधा अरोड़ा
एक गुमशुदा औरत की डायरी - सीमोन द बुआ
बधिया स्त्री - जर्मन ग्रीयर
अपना कमरा - वर्जीनिया वुल्फ
एक स्त्री की ज़िंदगी के चौबीस घंटे - स्टीफन ज्विग
स्त्री की पराधीनता - जान स्टुअर्ट मिल

कुछ अन्य पुस्तकें 

औरत होने की सजा - अरविन्द जैन
उत्तराधिकार बनाम पुत्राधिकार - अरविन्द जैन
यौन हिंसा और न्याय की भाषा - अरविन्द जैन
न्याय क्षेत्रे अन्याय क्षेत्रे - अरविन्द जैन
बचपन से बलात्कार - अरविन्द जैन
औरत अस्तित्व और अस्मिता - अरविन्द जैन
आदमी की निगाह में औरत - राजेन्द्र यादव
अतीत होती सदी और स्त्री का भविष्य - अर्चना वर्मा
औरत उत्तरकथा - राजेन्द्र यादव
भारत में विवाह संस्था का इतिहास - विश्वनाथ काशीनाथ राजवाड़े
सामान नागरिक संहिता - सरला माहेश्वरी
नए आयामों को तलाशती नारी - दिनेश नंदिनी डालमिया
प्राचीन भारत में नारी - डॉ. उर्मिला प्रकाश मिश्र
जो मारे जायेंगे - जया मित्रा
प्राचीन भारत में न्याय व्यवस्था - नताशा अरोड़ा
इक्कीसवीं सदी की ओर - सुमन कृष्णकांत
नारी देह के विमर्श - सुधीश पचौरी

स्त्री विमर्श : कुछ पठनीय उपन्यास 

पचपन खम्बे लाल दीवारें - उषा प्रियंवदा
रुकोगी नहीं राधिका - उषा प्रियंवदा
शेष यात्रा - उषा प्रियंवदा
अंतर्वंशी - उषा प्रियंवदा
अनारो - मंजुल भगत
आँखों की दहलीज - मेहरुन्निसा परवेज
उसका घर - मेहरुन्निसा परवेज
कोरजा - मेहरुन्निसा परवेज
तत्सम - राजी सेठ
रेत की मछली - कांता भारती
मेरे संधि पत्र - सूर्यबाला
उसकी पंचवटी - कुसुम अंसल
फ्रीलांसर - शुभा वर्मा
सात फेरे अधूरे - मीनाक्षी पुरी
एक ज़मीन अपनी - चित्रा मुद्गल
आवां - चित्रा मुद्गल

स्त्री विमर्श : कुछ पठनीय आत्मकथाएँ 

कागजी हैं पैरहन - इस्मत चुगताई
रसीदी टिकट - अमृता प्रीतम
मेरे आका - तहमीना दुर्रानी
मेरी कहानी - कमला दास
जो कहा नहीं गया - कुसुम अंसल
लगता नहीं है दिल मेरा - कृष्णा अग्निहोत्री
बूँद बावड़ी - पद्मा सचदेव
दोहरा अभिशाप - कौशल्या बैसंत्री
खानाबदोश - अजीत कौर
नंगे पैरों का सफ़र - दिलीप कौर टिंवाडा
कुछ कही कुछ अनकही - शीला झुनझुनवाला
कस्तूरी कुंडल बसे - मैत्रेयी पुष्पा
गुड़िया भीतर गुड़िया - मैत्रेयी पुष्पा
बुरी औरत की कथा - किश्वर नाहीद
नाच री घूमा - माधवी देसाई
मेरे बचपन के दिन - तस्लीमा नसरीन
उत्ताल हवा - तस्लीमा नसरीन
द्विखंडिता - तसलीमा नसरीन
वे अँधेरे दिन - तस्लीमा नसरीन
अन्या से अनन्या - प्रभा खेतान
एक कहानी यह भी - मन्नू भण्डारी
धरती की बेटी - एलन स्मेडली


 (स्रोत : 'स्त्री : मुक्ति का सपना' पुस्तक एवं मित्रगण)

19 टिप्‍पणियां:

  1. बाप रे ,कितना कम पढ़ा है मैंने इस साहित्य को -एकाध पढ़ा भी है तो इस लेबल के तहत नहीं !
    आपने कितनी पढी है ?

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  2. @ Arvind Mishra,
    इनमें से कुछ पढ़ी हैं. शेष, मैंने अकादमिक शोध से सम्बन्धित पुस्तकें अधिक पढ़ी हैं, जो सामान्य पाठकों के लिए नहीं हैं.
    इन सूची में से जो पढ़ी हैं, वे हैं - औरत होने की सजा,स्त्री: मुक्ति का सपना, इक्कीसवीं सदी की ओर, स्त्री उपेक्षिता, रुकोगी नहीं राधिका, मेरे बचपन के दिन...
    कुछ खरीदकर रखी हैं - परिधि पर स्त्री, स्त्री संघर्ष का इतिहास, स्त्री-अधिकारों का औचित्य साधन (मेरी वुल्फेंक्राफ्त, आधी पढ़ी), आधी आबादी का संघर्ष, न्यायक्षेत्रे-अन्यायक्षेत्रे.
    जो इस सूची में नहीं हैं और मैंने पढ़ी हैं - भारतीय नारी संघर्ष और मुक्ति (वृंदा कारत), नारीवादी राजनीति : संघर्ष और मुद्दे (सं. साधना आर्य, जिनी लोकनीता और निवेदिता मेनन, Women in Early Indian Societies, ed. Kumkum Roy,GENDERING CASTE THROUGH A FEMINIST LENS By Uma Chakrvarti, The Position of Women in Hindu Civilization, A.S. Altekar etc.
    और भी कई शोधपरक किताबें सैकड़ों शोध पत्र...
    मैंने साहित्य कम पढ़ा है, और आत्मकथा एक भी नहीं. कभी फुर्सत नहीं मिली. मेरा फोकस एरिया सिद्धांत है. पर स्त्री-विमर्श से सम्बन्धित साहित्य की आलोचनात्मक समीक्षा अवश्य पढ़ी है.

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  3. ऐसे ही आपके वैदुष्य का लोहा नहीं मानते हम !

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  4. बहुत कुछ है पढ़ने के लिए ... लगता है अभी तक कुछ नही पढ़ा .. अच्छी जानकारी है ...

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  5. in pustakon ke liye jaankari dene ke liye aapka bahut nahut dhanywaad

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  6. इस महत्‍वपूर्ण साहित्‍य से परिचय कराने का शुक्रिया।

    ---------
    क्‍या आपको मालूम है कि हिन्‍दी के सर्वाधिक चर्चित ब्‍लॉग कौन से हैं?

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  7. main bhi kahungi ki bahut padhana baaki hai ... aapne kafi salike se sangrah kiya hai .. dhanyvad

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  8. आपके ब्लॉग पर आकर अच्छा लगा. हिंदी लेखन को बढ़ावा देने के लिए तथा प्रत्येक भारतीय लेखको को एक मंच पर लाने के लिए " भारतीय ब्लॉग लेखक मंच" का गठन किया गया है. आपसे अनुरोध है कि इस मंच का followers बन हमारा उत्साहवर्धन करें , साथ ही इस मंच के लेखक बन कर हिंदी लेखन को नई दिशा दे. हम आपका इंतजार करेंगे.
    हरीश सिंह.... संस्थापक/संयोजक "भारतीय ब्लॉग लेखक मंच"

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  9. आप को होली की हार्दिक शुभकामनाएं । ठाकुरजी श्रीराधामुकुंदबिहारी आप के जीवन में अपनी कृपा का रंग हमेशा बरसाते रहें।

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  10. जागरूकता पूर्ण प्रस्तुति
    बहुत बहुत शुभकामना

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  11. bahut badhiya sanklan hai stree se judee pustako ka. dekhe kitnee padh pate hai aage

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  12. "स्त्री सशक्तीकरण के विविध आयाम" ( २००४ में प्रकाशित) सम्पादक त्रयी : डॉ ऋषभदेव शर्मा, डॉ. कविता वाचक्नवी, डॉ गोपाल शर्मा ( गीता प्रकाशन, हैदराबाद )

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  13. कल 03/08/2011 को आपकी एक पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
    धन्यवाद!

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  14. बढिया खजाना, लेकिन मैंने इनमें से एक भी नहीं पढी है, सोचता हूँ कि मुझे जरुरत पडेगी या नहीं।

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  15. लो भाई हमारे गन्दे विचारो ने पहले देश को बाटा फीर र्धमो को बाटा,समाज और जातीयो को बाटा अब हरेक धरो को बाटने मे लगे ह ।
    "नारीवाद" का तङका लगाके जरा सोचो स्त्रीलिग नारी बादमे बनती है पहले वो अपने माता-पीता की संतान होती और संतान की उत्पति दोनो से ही सभव है तो ये असमानता कहा होगी नारी और पुरुष दोनो समान है नारीवाद सिर्फ स्वार्थी तत्वौ के गन्दे विचारो भ्रामक हथियार है।

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बहस चलती रहे, बात निकलती रहे...