एक सवर्ण स्त्री और एक दलित स्त्री की समस्याओं में क्या अंतर
हैं-? ये पूछते समय लोग यह भूल जाते हैं कि सवर्ण
स्त्री भी दलित स्त्री का छुआ नहीं खाती। उसे उन्हीं हिकारत भरी नज़रों से देखती है।
कई स्त्रियों के साथ होने पर वह खुद को स्त्री होने से ज़्यादा जाति से आइडेंटिफाई
करती दिखती है। लेकिन वह भूल जाती है कि जिस तरह पूंजीवाद ने जाति के नाम पर मजदूरों
को बाँटकर उनका आंदोलन क्षीण कर दिया, उसी तरह से ब्राह्मणवादी
पितृसत्ता ने औरतों को जाति के नाम पर बाँटकर नारीवादी आंदोलन में तेज धार नहीं आने
दी।
नारीवाद से जुड़ी सभी औरतों को ये सोचना होगा कि भारत में दलित
स्त्री की बात किये बगैर नारीवाद का प्रश्न अधूरा है और यही पश्चिमी नारीवाद से भारतीय
नारीवाद की भिन्नता का आधार है।
ज़रूरत इस बात की है कि यथास्थिति से जूझने वाला हर व्यक्ति
आगे आये और इस बात पर विचार करे कि दलित स्त्री समाज की पदसोपानीय व्यवस्था में सबसे
नीचे रही है। वह तिहरा शोषण झेलती रही है-
1.एक दलित होने के नाते,
2.एक स्त्री होने के नाते और
3.एक मजदूर होने के नाते
कविता-संग्रह
"यथास्थिति से टकराते हुए: दलित-स्त्री-जीवन से जुड़ी कविताएँ" इसी बात को पैंसठ कवियों की कविताओं के माध्यम से सामने लाने की कोशिश में
एक और कदम है। संग्रह में सम्मिलित कवियों में स्त्रियाँ हैं, तो पुरुष भी हैं, सवर्ण हैं, तो
दलित भी हैं, लेकिन सबका उद्देश्य दलित स्त्री के पक्ष में खड़े
होना है।
दलित स्त्री की स्थिति को विपिन शर्मा ने अपनी कविता में बहुत
सटीक ढंग से उठाया है-(एक दलित
स्त्री घर-बाहर शोषण झेलती है। बाहर उसे उसे चीरकर खा जाने वाले
भेडिये हैं, जिनकी लोलुप दृष्टि और अश्लील कटाक्ष झेलती वह मैला
कमाने का काम करके घर आती है और घर पर उसे पति की मारपीट सहनी पड़ती है। वह ब्राह्मणवाद
के खिलाफ लड़ रहे अपने पति से पूछती है-)
मेरे मालिक
तुम तो मेरी तरह ही थे
सदियों से दलित-पीड़ित
एक स्त्री पाते ही
परमेश्वर बनने का ख़्वाब कैसे जाग उठा
तुम तो मालिकों के खिलाफ
मिसाल थे बगावत की
मुझे कुचल कर
किस मुँह से न्याय की बात करोगे
मेरे पतिदेव
तुम तो बड़े ज्ञानी-ध्यानी हो
आखिर पुरुष जो ठहरे
या तो मेरा-अपना भेद बता दो
या बता दो
ब्राह्मण पुरुष से
अपना भेद
तुम्हारा हक
हो सकता है अगर
एक ब्राह्मण के समतुल्य
तो हे मेरे देव
मेरा तुम्हारे बराबर क्यों नहीं??
यह कविता-संग्रह
दलित-स्त्री के विभिन्न पक्षों से जुड़ी कहानी, कविता और आलोचनाओं को सामने लाने के प्रयास की एक और कड़ी है। इसके पहले इस
श्रंखला की पहली कड़ी के रूप में कहानी-संग्रह 'यथास्थिति से टकराते हुए दलित स्त्री जीवन से जुड़ी कहानियाँ' भी प्रकाशित हो चुका है, जिसमें बाईस युवा कहानीकार शामिल
हुए थे।
अनिता भारती और बजरंग बिहारी तिवारी द्वारा संपादित यह कविता-संग्रह इस मायने में प्रशंसनीय प्रयास है कि
यह दलित स्त्री के प्रश्न पर 'मिलकर' सोचने
की बात करता है। जाति-व्यवस्था पर अपने ढंग से प्रहार करते हुए
एक समतावादी समाज की स्थापना करने वाले ऐसे प्रयासों का स्वागत किया जाना चाहिए।
एक सवर्ण स्त्री और एक दलित स्त्री की समस्याओं में क्या अंतर
हैं-? ये पूछते समय लोग यह भूल जाते हैं कि सवर्ण
स्त्री भी दलित स्त्री का छुआ नहीं खाती। उसे उन्हीं हिकारत भरी नज़रों से देखती है।
कई स्त्रियों के साथ होने पर वह खुद को स्त्री होने से ज़्यादा जाति से आइडेंटिफाई
करती दिखती है। लेकिन वह भूल जाती है कि जिस तरह पूंजीवाद ने जाति के नाम पर मजदूरों
को बाँटकर उनका आंदोलन क्षीण कर दिया, उसी तरह से ब्राह्मणवादी
पितृसत्ता ने औरतों को जाति के नाम पर बाँटकर नारीवादी आंदोलन में तेज धार नहीं आने
दी।
नारीवाद से जुड़ी सभी औरतों को ये सोचना होगा कि भारत में दलित
स्त्री की बात किये बगैर नारीवाद का प्रश्न अधूरा है और यही पश्चिमी नारीवाद से भारतीय
नारीवाद की भिन्नता का आधार है।
ज़रूरत इस बात की है कि यथास्थिति से जूझने वाला हर व्यक्ति
आगे आये और इस बात पर विचार करे कि दलित स्त्री समाज की पदसोपानीय व्यवस्था में सबसे
नीचे रही है। वह तिहरा शोषण झेलती रही है-
1.एक दलित होने के नाते,
2.एक स्त्री होने के नाते और
2.एक स्त्री होने के नाते और
3.एक मजदूर होने के नाते
कविता-संग्रह
"यथास्थिति से टकराते हुए: दलित-स्त्री-जीवन से जुड़ी कविताएँ" इसी बात को पैंसठ कवियों की कविताओं के माध्यम से सामने लाने की कोशिश में
एक और कदम है। संग्रह में सम्मिलित कवियों में स्त्रियाँ हैं, तो पुरुष भी हैं, सवर्ण हैं, तो
दलित भी हैं, लेकिन सबका उद्देश्य दलित स्त्री के पक्ष में खड़े
होना है।
दलित स्त्री की स्थिति को विपिन शर्मा ने अपनी कविता में बहुत
सटीक ढंग से उठाया है-(एक दलित
स्त्री घर-बाहर शोषण झेलती है। बाहर उसे उसे चीरकर खा जाने वाले
भेडिये हैं, जिनकी लोलुप दृष्टि और अश्लील कटाक्ष झेलती वह मैला
कमाने का काम करके घर आती है और घर पर उसे पति की मारपीट सहनी पड़ती है। वह ब्राह्मणवाद
के खिलाफ लड़ रहे अपने पति से पूछती है-)
मेरे मालिक
तुम तो मेरी तरह ही थे
सदियों से दलित-पीड़ित
एक स्त्री पाते ही
परमेश्वर बनने का ख़्वाब कैसे जाग उठा
तुम तो मालिकों के खिलाफ
मिसाल थे बगावत की
मुझे कुचल कर
किस मुँह से न्याय की बात करोगे
तुम तो मेरी तरह ही थे
सदियों से दलित-पीड़ित
एक स्त्री पाते ही
परमेश्वर बनने का ख़्वाब कैसे जाग उठा
तुम तो मालिकों के खिलाफ
मिसाल थे बगावत की
मुझे कुचल कर
किस मुँह से न्याय की बात करोगे
मेरे पतिदेव
तुम तो बड़े ज्ञानी-ध्यानी हो
आखिर पुरुष जो ठहरे
या तो मेरा-अपना भेद बता दो
या बता दो
ब्राह्मण पुरुष से
अपना भेद
तुम्हारा हक
हो सकता है अगर
एक ब्राह्मण के समतुल्य
तो हे मेरे देव
मेरा तुम्हारे बराबर क्यों नहीं??
तुम तो बड़े ज्ञानी-ध्यानी हो
आखिर पुरुष जो ठहरे
या तो मेरा-अपना भेद बता दो
या बता दो
ब्राह्मण पुरुष से
अपना भेद
तुम्हारा हक
हो सकता है अगर
एक ब्राह्मण के समतुल्य
तो हे मेरे देव
मेरा तुम्हारे बराबर क्यों नहीं??
यह कविता-संग्रह
दलित-स्त्री के विभिन्न पक्षों से जुड़ी कहानी, कविता और आलोचनाओं को सामने लाने के प्रयास की एक और कड़ी है। इसके पहले इस
श्रंखला की पहली कड़ी के रूप में कहानी-संग्रह 'यथास्थिति से टकराते हुए दलित स्त्री जीवन से जुड़ी कहानियाँ' भी प्रकाशित हो चुका है, जिसमें बाईस युवा कहानीकार शामिल
हुए थे।
अनिता भारती और बजरंग बिहारी तिवारी द्वारा संपादित यह कविता-संग्रह इस मायने में प्रशंसनीय प्रयास है कि
यह दलित स्त्री के प्रश्न पर 'मिलकर' सोचने
की बात करता है। जाति-व्यवस्था पर अपने ढंग से प्रहार करते हुए
एक समतावादी समाज की स्थापना करने वाले ऐसे प्रयासों का स्वागत किया जाना चाहिए।
बेहद सटीक अभीव्यक्ति | विचारणीय | आभार
जवाब देंहटाएंकभी यहाँ भी पधारें और लेखन भाने पर अनुसरण रूप में स्नेह प्रकट करने की कृपा करें |
Tamasha-E-Zindagi
Tamashaezindagi FB Page
लाज़वाब 👍
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