आजकल ब्लॉगजगत में महिला ब्लॉगर्स और महिला मुद्दों को लेकर कुछ अधिक चर्चाएँ हो रही हैं. इनमें दो मुद्दे प्रमुख हैं- पहला मुद्दा यह है कि एक लेखक, लेखक होता है. क्या उसे स्त्री या पुरुष के वर्ग में बाँटना उचित है? इस बात से एक और बात निकलती है कि नारी ब्लॉगर्स एक ओर तो स्त्री-पुरुष समानता की बात करते हैं, दूसरी ओर महिला ब्लॉगर का बिल्ला लगाये भी घूमना चाहते हैं. दूसरा मुद्दा यह है कि नारीवाद जब स्त्री-पुरुष दोनों की समानता की बात करता है तो उसे नारीवाद क्यों कहा जाय, समानतावाद क्यों नहीं? देखने में ये दोनों बातें अलग-अलग लग सकती हैं,परन्तु...
शनिवार, 26 दिसंबर 2009
बुधवार, 23 दिसंबर 2009
नारीवाद से सम्बन्धित भ्रान्तियाँ-३(नारीवाद और गृहकार्य)
नारीवाद के विषय में बहुत से लोगों को यह ग़लतफ़हमी भी है कि वह गृहिणियों को उपेक्षित दृष्टि से देखता है और चाहता है कि सभी महिलाएँ गृहकार्य छोड़कर नौकरी करने लग जायें, जबकि असलियत यह है कि सर्वप्रथम नारीवादी आन्दोलन ने ही औरतों के गृहकार्य को भी एक उत्पादक कार्य मानने की वक़ालत की थी.
समाजवादी नारीवाद ने यह सिद्धान्त दिया था कि पूँजीवाद के विकास में औरतों द्वारा किये जाने वाले घरेलू कार्य का बहुत बड़ा योगदान है, जबकि उसे एक अनुत्पादक कार्य मानकर महत्त्व नहीं दिया जाता है. उनके अनुसार घरेलू कार्य निम्न प्रकार से पूँजीवाद को लाभ...
सोमवार, 21 दिसंबर 2009
नारीवाद से सम्बन्धित भ्रान्तियाँ--२ (नारीवाद पुरुष विरोधी है)
नारीवाद को अधिकतर लोग पुरुष-विरोधी समझते हैं. नारीवादी औरत को एक ऐसी एबनॉर्मल, फ़्रस्टेटेड, सख़्तमिजाज़, और झगड़ालू औरत समझा जाता है, जो बात-बात में पुरुषों से झगड़ा कर बैठती है और खोद-खोदकर ऐसे मुद्दे उछालती है, जिससे पुरुषों को नीचा दिखाया जा सके. नारीवादी औरत को लोग अपने व्यक्तिगत जीवन की कुंठा को सार्वजनिक जीवन में लागू करने वाली समझते हैं. लोगों के अनुसार ऐसी औरतें अपने जीवन में सामंजस्य नहीं बैठा पातीं, एडजस्टमेंट नहीं करना चाहतीं और इसका दोष पुरुषों के मत्थे मढ़ती हैं. जबकि अन्य अनेक भ्रान्तियों की तरह यह भी एक भ्रान्ति है. नारीवाद पुरुषों...
गुरुवार, 17 दिसंबर 2009
नारीवाद से सम्बन्धित भ्रान्तियाँ-१ ( नारीवाद पश्चिमी अवधारणा है )
नारीवाद पर अक्सर यह आरोप लगाया जाता है कि वह पश्चिम से आयातित अवधारणा है और उसका भारतीय संस्कृति से कोई लेना-देना नहीं है. प्रतिपक्षियों के अनुसार चूँकि भारत में नारी की पूजा होती है, उसका सर्वोच्च स्थान है. इसलिये नारीवाद की भारतीय समाज में न कोई आवश्यकता कभी थी और न है.
यह बात बिल्कुल सही है कि "नारीवाद" को इस नाम से सर्वप्रथम पश्चिम में ही जाना गया और इसे एक विचारधारा का रूप भी वहीं प्रदान किया गया. परन्तु प्राचीन भारतीय साहित्य में आपको ऐसे उदाहरण मिल जायेंगे , जिनमें नारी का विद्रोही स्वरूप सामने आया है. भले ही नारी के इस...
शुक्रवार, 11 दिसंबर 2009
आप कहाँ खड़े हैं?
समाज में बहुत से मुद्दे ऐसे हैं, जिन पर लोगों की राय बिल्कुल अलग-अलग होती है, परन्तु नारी की स्थिति से सम्बन्धित बहुत सी ऐसी बातें हैं, जिनके बारे में लोगों को पता ही नहीं होता कि वे क्या सोचते हैं? यहाँ तक कि नारी स्वयं नहीं जानती कि उनकी स्थिति जैसी है, वैसी क्यों है? और वह सही है या ग़लत? समाज में नारी की स्थिति के विषय में निम्नलिखित मत हो सकते हैं-
१. स्त्री और पुरुष दोनों में जैविक रूप से भेद है, अतः सामाजिक भेद भी होना चाहिये. इसमें कुछ भी ग़लत नहीं है. दोनों एक-दूसरे के पूरक हैं. जहाँ तक पुरुषों द्वारा स्त्री के शोषण...
शुक्रवार, 4 दिसंबर 2009
नारीवाद से परहेज़ क्यों?
इस ब्लॉग पर मेरी पिछली पोस्ट से किसी को बुरा लगा हो तो मैं क्षमाप्रार्थिनी हूँ. वाणीगीत जी, आपने सच कहा है कि मुझे आपकी टिप्पणी को इतने हल्के में नहीं लेना चाहिये था. पर विश्वास कीजिये मेरा तात्पर्य किसी मुद्दे को उछालकर विवादित बनाने का बिल्कुल नहीं था. मेरा उद्देश्य तो नारीवाद और नारीवादियों को लेकर कुछ ग़लतफ़हमियों को दूर करना था. वस्तुतः मैंने इस ब्लॉग को आरम्भ ही किया था नारीवाद से सम्बन्धित कुछ सैद्धान्तिक बातों को स्पष्ट करने के लिये. नारी से सम्बन्धित समस्याओं,विमर्शों और व्यावहारिक मुद्दों पर अन्य लोकप्रिय और महत्त्वपूर्ण ब्लॉग हैं, जिनमें...
बुधवार, 2 दिसंबर 2009
नारी, प्रेम और नारीवादी
परसों एक कविता लिखी औरत के प्रेम के पागलपन पर, कमेंट मिला कि यह किसी नारीवादी की कविता नहीं हो सकती. सही बात है. इसी प्रेम वाली बात को लेकर मेरे कई वामपंथी दोस्तों को मेरे ब्लॉग का "फ़ेमिनिस्ट पोएम्स" शीर्षक नहीं ठीक लगता. वे कहते हैं कि या तो ये शीर्षक हटा दो या इस पर प्रेम की कविताएँ मत लिखो. पर, मैं अपने भावों को किसी वाद में बाँधने के पक्ष में नहीं.
अब मैं मुद्दे पर आ जाती हूँ. प्रेम प्रकृति का एक अनुपम उपहार है, स्त्री और पुरुष दोनों के लिये. दोनों ही प्यार करते हैं और प्यार में पागल भी होते हैं. पर दोनों के प्रेम के परिणाम...
रविवार, 8 नवंबर 2009
संस्कृत नाट्यशास्त्रों में नायक-भेद: कुछ प्रश्न
संस्कृत काव्यशात्रों तथा नाट्यशास्त्रों में नायिका-भेद और नायक-भेदों का वर्णन श्रृंगार-रस के परिप्रेक्ष्य में हुआ है. नायिका-भेद के विषय में अरविन्द जी अपने ब्लॉग पर लिख रहे हैं. मैं यहाँ नायक-भेदों का उल्लेख मात्र करके कुछ प्रश्न उठाना चाहती हूँ. ये प्रश्न मुख्यतः उनलोगों से है जो यह कहते हैं कि मुस्लिम आक्रमणकारियों के आने से पूर्व भारत में नारी की स्थिति अपेक्षाकृत अच्छी थी.
दशरूपक संस्कृत नाट्यशास्त्रों में एक सम्माननीय स्थान रखता है. इसके अनुसार नायक के चार भेद होते हैं- धीरललित, धीरशान्त, धीरोदात्त तथा धीरोद्धत. अधिक...
गुरुवार, 5 नवंबर 2009
बच्चों की पोशाक और जेंडर-भेद
आज अपने इस लेख के माध्यम से मैं एक नयी बहस करने जा रही हूँ. पिछले कुछ दिनों मैं अपनी दीदी के यहाँ रहकर आयी हूँ. दीदी की नौ साल की बेटी है. किशोरावस्था की ओर कदम बढ़ाती इस बच्ची की कुछ बातों को सुनकर आश्चर्य होता है कि कैसे बचपन से ही हम बच्चों के मन में जेंडर-भेद के बीज बो देते हैं. हाँलाकि हमारे परिवार में इस बात का ध्यान दिया जाता है, पर बच्चों को आस-पड़ोस की बातों से तो नहीं बचाया जा सकता.
हुआ यह कि हमें कहीं जाना था तो उसे दीदी ने एक ड्रेस पहनानी चाही इस पर बच्ची ने उसे इसलिये पहनने से मना कर दिया क्योंकि उसकी किसी दोस्त...
मंगलवार, 6 अक्टूबर 2009
स्त्री की स्वतंत्रता : दूबे की पोस्ट का जवाब
आमतौर पर मैं किसी के ब्लॉगपोस्ट के प्रत्युत्तर में कुछ कहती नहीं पर ये लेख मैं दूबे जी की पोस्ट के जवाब में लिख रही हूँ. सबसे पहले मैं उनको ये सलाह देना चाहुँगी कि वे महिला संगठनों के बारे में लिखने से पहले कुछ जानकारी जुटा लेते तो अच्छा होता. सबसे पहले मैं उनकी महिला "शरीर के बाज़ारीकरण" की बात का जवाब देना चाहती हूँ. जब हम बाज़ार में महिलाओं के शरीर की नुमाइश के बारे में बात करते हैं तो दोष महिलाओं को देते हैं. हम ये भूल जाते हैं कि लगभग सभी बड़ी विज्ञापन कम्पनियों पर पुरुषों का कब्ज़ा है. हम बात करते हैं कि क्यों कोई महिला संगठन इसका विरोध...
शनिवार, 19 सितंबर 2009
छेड़छाड़ की समस्या
बहुत दिनों से मैं इस लेख पर अच्छी प्रतिक्रियाओं की प्रतीक्षा कर रही थी. आज सोचा कि कुछ लिख ही लिया जाये. मेरे एक मित्र ने छेड़छाड़ की समस्या को एक मानसिक समस्या बताया है. मैं उनकी इस बात से बिल्कुल भी सहमत नहीं हूँ. यह समस्या केवल मनोवैज्ञानिक नहीं बल्कि सामाजिक समस्या है. अगर इस समस्या को केवल मनोवैज्ञानिक मान लें तो दुनिया के साठ से सत्तर प्रतिशत पुरुष मनोरोगी सिद्ध हो जायेंगे. यह इतनी सीधी-सादी सी बात नहीं है. जिस तरह भारत में दलितों की समस्या की जड़ें इसके इतिहास और सामाजिक ढाँचे में निहित हैं, उसी प्रकार पूरे विश्व में नारी की समाज में दोयम...
मंगलवार, 5 मई 2009
मेरे कुछ सवाल...जवाब कौन देगा?
मेरा पालन-पोषण बचपन से ही लड़कों की तरह हुआ था. मैं अपने भाई से सिर्फ़ एक साल बड़ी हूँ. मेरे घर में हम दोनों के लिये एक जैसी चीज़ें आती थीं. मुझे कभी नहीं लगा कि मैं उससे किसी भी मामले में अलग हूँ. पढ़ने-लिखने में उससे ज़्यादा तेज थी, इसलिये मेरे पिताजी मेहमानों के सामने मेरी बडा़ई करते थे. मैं उनकी दुलारी बिटिया थी. पर धीरे-धीरे मेरे बड़े होने के साथ ही चीज़ें बदलने लगीं. माँ मुझे लड़कों के साथ खेलने के लिये मना करने लगी. मेरा भाई शाम को देर से खेलकर घर आता था, पर मेरा बाहर आना-जाना बन्द हो गया. हम पढ़ने गाड़ी(ट्रेन) से आते-जाते थे. गाड़ी में अनचाहे स्पर्शों...
शनिवार, 25 अप्रैल 2009
पितृसत्ता :एक अवलोकन
पितृसत्ता का तात्पर्य आमतौर पर पुरुष-प्रधान समाज से लिया जाता है,जिसमें सम्पत्ति का उत्तराधिकार पिता से पुत्र को प्राप्त होता है. परन्तु नारीवादी दृष्टि से पितृसत्ता की अवधारणा अत्यन्त व्यापक है. यह मात्र पुरुषों के वर्चस्व से सम्बन्धित नहीं है, अपितु इसका सम्बन्ध उस सामाजिक ढाँचे से है, जिसके अन्तर्गत सत्ता सदैव शक्तिशाली के हाथ में होती है, चाहे वह स्त्री हो या पुरुष. इस प्रकार पितृसत्तात्मक विचारधारा स्त्री और पुरुष दोनों को प्रभावित करती है.
पितृसत्ता के इस अर्थ को समझ लेने पर हम उस आक्षेप का स्पष्टीकरण दे सकते हैं,जिसके अनुसार कहा जाता है...
गुरुवार, 16 अप्रैल 2009
नारीवाद और नारी-सशक्तीकरण
नारीवाद और नारीसशक्तीकरण एक-दूसरे से भिन्न अवश्य हैं, परन्तु विरोधी नहीं। नारीवाद एक दर्शन है,जिसका उद्देश्य है-समाज में नारी की विशेष स्थिति के कारणों का पता लगाना और उसकी बेहतरी के लिये वैकल्पिक समाधान प्रस्तुत करना, जबकि महिला-सशक्तीकरण एक आन्दोलन है,एक कार्य-योजना है,एक प्रक्रिया है,जिसे मुख्यत: सरकार और गैरसरकारी संगठन करते हैं।
नारीवाद चूँकि नारी की समस्याओं का अध्ययन है,इसलिये यह तब तक अप्रसांगिक नहीं हो सकता जब तक कि समाज में नारी और पुरुष एक बराबर की स्थिति में न आ जाएं। women studies में हम दोनों का ही अध्ययन करते हैं- सिद्धांतों का भी...
सोमवार, 13 अप्रैल 2009
सेक्स और जेंडर में अन्तर
नारीवाद का सबसे बड़ा योगदान है "सेक्स" और "जेन्डर" में भेद स्थापित करना . सेक्स एक जैविक शब्दावली है ,जो स्त्री और पुरुष में जैविक भेद को प्रदर्शित करती है . वहीं जेन्डर शब्द स्त्री और पुरुष के बीच सामाजिक भेदभाव को दिखाता है . जेन्डर शब्द इस बात की ओर इशारा करता है कि जैविक भेद के अतिरिक्त जितने भी भेद दिखते हैं,वे प्राकृतिक न होकर समाज द्वारा बनाये गये हैं और इसी में यह बात भी सम्मिलित है कि अगर यह भेद बनाया हुआ है तो दूर भी किया जा सकता है . समाज में स्त्रियों के साथ होने वाले भेदभाव के पीछे पूरी सामाजीकरण की प्रक्रिया है,जिसके तहत बचपन से...
शनिवार, 11 अप्रैल 2009
नारीवाद का मतलब
ऑरकुट पर नारीवाद से सम्बंधित कम्युनिटी ढूँढते हुए मैंने नारीवाद-विरोधी कम्युनिटी भी देखीं .कुछ ऐसी भी हैं जिनका कहना है की वे feminists से नफरत करते हैं पर humanists से प्यार करते हैं .वैसे ,इस democratic देश में सभी को अपनी पसंद और विचार जाहिर करने का अधिकार है ,पर मैंने देखा है कि जो लोग जिसके बारे में नहीं जानते ,वे ही सबसे अधिक विरोध करते हैं .नारीवाद की ना कभी पुरुषों से दुश्मनी रही है और ना ही मानववाद से . तो जब कोई यह कह रहा होता है कि वह नारीवाद को इसलिए पसंद नहीं करता कि वह पुरुषों का विरोधी है ,तो वह अपने इस विषय में कम ज्ञान को दिखा...
शुक्रवार, 3 अप्रैल 2009
संदेश
जब मैंने ब्लॉग लिखना शुरू किया था ,तो सोचा था कि सिर्फ़ कवितायें ही लिखूंगी .पर मुझे लगने लगा कि कविताओं में अपनी भावनाएँ तो सुन्दरता से अभिव्यक्त की जा सकती हैं ,पर विचार नहीं .तो मैंने यह नया ब्लॉग शुरू किया .इसके माध्यम से मैं अपने विचारों को अपने ब्लॉग-जगत के साथियों तक पहुँचाना चाहूँगी .मैं चाहूँगी की यह ब्लॉग नारी मुद्दों से सरोकार रखने वालों के लिए एक मंच का काम करे .मैं इस ब्लॉग को अन्य नारी सम्बन्धी ब्लॉग से जोड़ने का प्रयास भी करुँगी .मैं कुछ प्रश्न उठाऊंगी और अपने साथियों से अपेक्षा करुँगी कि वे इसका उत्तर बेहिचक द...
रविवार, 11 जनवरी 2009
आज की नारी
हम इस ब्लॉग पर बातें करेंगे आज की नारी की आकांक्षाओं और सपनों की ,और दार्शनिकों में इन सपनों तथा उन्हें पूरा करने के रास्तों को लेकर चल रही बहसों की .ब्लॉग लेखक कोई बड़ा /बड़ी फेमिनिस्ट नहीं है ,लेकिन इन मामलों की थोड़ी बहुत समझ ज़रूर है .पाठक इस ब्लॉग पर बहस के लिए तथा ब्लोगर की बातों से सहमत और असहमत होने के लिए सादर आमंत्रित हैं...
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